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आस्तीनौ बल मि क्य छौं? PUZZLE-33 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE


आस्तीनौ बल मि क्य छौं? 

PUZZLE-33

JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.

GARHWALI PUZZLE

बल  क्वी  तीन   तिगाड़ा 

होंदन     काम    बिगाड़ा

त   तिनके   का   सहारा

होंदन   त्रि   द्यो   हमारा

बल शंकरौ  दांयु   बाजु

ब्रह्म शृष्टि तैं रचण  वालु

नीलकंठो   बांयु     बाजु

विष्णु शृष्टितैं पलण वालु

भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) त्रिदेवों (ब्रह्मा विष्णु महेश) की आस में पलने वाली और उन्हीं के साथ विश्वासघात करने वाली पौराणिक  विष्णु पुराण संदर्भित आख्यानों के मद्देनजर अपनी भूमिका स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल कोई तीन तिगाड़ा, होते हैं काम बिगाड़ा, तो तिनके, यानी तीन के (ब्रह्मा विष्णु महेश) का सहारा, होते हैं त्रिदेव हमारा, त बल शंकर जी के बांये बाजू, बल ब्रह्मा जी शृष्टि के रचनाकार, तो नीलकंठ के बांये बाजू, विष्णु जी शृष्टि के पालनहार, यानी ब्रह्माजी शंकर भगवान के दांए हाथ हैं,‌ यानी‌ ब्रह्मा जी शंकर भगवान के विश्वकर्मा हैं, तो विष्णु जी बांये हाथ, यानी शंकर भगवान के दिल के करीब हैं। यानी तीनों‌ एकाकार होकर मुंडनेश्वर महादेव की आकृति को देवभूमि उत्तराखंड के मुंडनेश्वर में स्थापित करते हैं। पौड़ी मुख्यालय से लगभग 37 किलोमीटर दूर कल्जीखाल विकासखण्ड के अन्तर्गत खैरालिंग महादेव का मंदिर‌‌ एक रमणीक एवम सुरम्य पहाडी पर स्थित है। खैरालिंग महादेव को मुण्डनेश्वर महादेव भी कहा जाता है। इन्हें धवड़िया देवता के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि जिस पर्वत चोटी पर श्री खैरालिंग महादेव का मन्दिर स्थापित है वह मुण्ड (सिर) के आकार का उभरा हुआ है। तीन ओर से जो पर्वत श्रृखंलायें यहां आकर मिलती हैं वह घोड़े की पीठ के समान सम होकर चली हैं और उनके मिलन स्थल पर सिर के रुप की आकृति बन गई है जिसे मुण्डन डांडा भी कहा जाता है। और इसी के आधार पर इसे मुण्डनेश्वर भी कहा गया है। मन्दिर में स्थापित लिंग खैर के रंग का है अत: इसे खैरालिंग कहा जाता है। मान्यता है कि खैरालिंग के तीन भाई और भी हैं, ताड़केश्वर, एकेश्वर और विन्देश्वर (विनसर), इनकी एक बहन काली भी है जो कि खैरालिंग के साथ रहती है। वहीं खैरालिंग मन्दिर में काली का थान भी है। भगवान शिव कभी भी बलि नही लेते हैं, लेकिन खैरालिंग मंदिर में बलि दी जाती रही है, इस संबन्ध में कहा जाता है कि खैरालिंग के साथ काली भी है इसी लिये यहां बलि दी जाती है। यहां प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास में मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें पशुबलि दी जाती है। दो दिन के इस मेले में पहले दिन ध्वजा चढ़ाई जाती है, तथा दूसरे दिन बलि दी जाती है। सिद्धपीठ लंगूरगढ़ी, एकेश्वर महादेव, विन्सर महादेव, रानीगढ़, दूधातोली, जड़ाऊखांद, दीवाडांडा, ताड़केश्वर महादेव और विस्तृत हिमालय यहां से दृष्टिगोचर होता है।


जो  मुख  मा  राम  राम

अर बगल मा बल  छुर्री

धरि    मुंडनेश्वरा   नाम

खावु बल  बखरै  सिर्री

वै   को   जीणो   हराम

ह्वाइ बल  काम  तमाम

ता जनी  बिगड़ी  काम

तनी  ल्याइ  बुबौ  नाम

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के भ्रामक चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए आगे कहता है कि बल जो मुख में राम राम, और बगल (बाजू) में बल छुर्री, धरकर मुंडनेश्वर महादेव के नाम, खावे बल बकरे की सिर्री (मुंडी), उसका जीना हराम, हुआ बल काम तमाम, तो बल जैसे बिगड़ा काम, वैसे लिया बुबौ (बाप यानी शंकर बाबा का) नाम। 


जैको ब्रह्माविष्णु शंकर

वै को बल क्या भयंकर

तबल कणकण मा राम

अर हर कंकर मा शंकर

खास  तीन   का   सांप

हुंदा बल  मानव ‌‌ रक्षक  

आसतीन    का    सांप

हुंदा बल दानव  भक्षक

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है‌ कि बल जिसके ब्रह्मा विष्णु शंकर, उसके लिए बल क्या भयंकर? यानी 'जिसे त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त है, उस पर सांपों का सांप्रदायिक जहर भी असर नहीं कर सकता'। यानी सनातन धर्म के आगे, साम्प्रदायिक का नहीं चले कुकर्म, क्योंकि देवभूमि के बल कण‌ कण में राम, और हर कंकर में शंकर। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल खास तीन (त्रिदेवों) के सांप, होते हैं बल मानव ‌‌रक्षक (शेषनाग विष्णु जी को छत्रछाया प्रदान करते हैं, तो शंकर के गले के हार में सुशोभित होते हैं, ब्रह्माजी खुद नाग देवताओं के मंदिरों को बनाने वाले विश्वकर्मा हैं), तो बल आसतीन (बगल/बाजू) के सांप, होते हैं बल दानव (हिर्ण्यकश्यप और जलंधरी जैसे क्रूर राक्षस) भक्षक। 


ब्रह्मा विष्णु काम काजू

खाणा    बदाम    काजू

ता हिरण्यकश्यप  आजू

बैठ्युं    जलंधरी    बाजू

जलंधर्या   बान  शालिग

हिर्ण्यकशपा बान नर्सिंग

खास्तीनौ    प्रताप    छौंं

आस्तीनौ बल मि क्यछौं?

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं का जिक्र करते हुए आगे कहता है कि बल ब्रह्मा विष्णु काम काजू (कामकाजी),‌ खा रहे हैं बदाम काजू, तो हिरण्यकश्यप (विष्णु जी के अनन्य भक्त प्रहलाद के राक्षस प्रव‌ति के पिता, जिसने बेटे भक्त को ही जिंदगी का कांटा समझकर कई क्रूर तरीकों जैसे होलिका दहन के जरिये अपने मार्ग से हटाने की नाकाम कोशिश की थी, तो ब्रह्माजी से आशीर्वादित वरदान के तोड़ की खातिर विष्णु जी को नरसिंह भगवान का अवतार लेकर तथाकथित राक्षस का वध करना पड़ा था) आजू, बैठा हुआ है जलंधरी (वृंदा का राक्षसी प्रवति का पति जिसे ब्रह्माजी से प्राप्त वरदान था कि उसकी मौत तभी हो सकती है, जब उसकी पत्नी‌ वृंदा का सतीत्व भंग हो, तो विष्णु जी‌ ने क्रूर जलंधरी राक्षस का वध करने हेतु वृंदा का सतीत्व भंग किया, फलस्वरूप विष्णु जी को‌ वृंदा‌ के शाप से शापित होकर चार महीने (जून से अक्टूबर) देवशयनी से लेकर देव उठावनी तक शालिग्राम पत्थर के रूप में भूमिगत रहना पड़ता है, इन चार अशुभ महीनों में मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं, बाद में वृंदा का विवाह विष्णु जी के साथ हो जाता है, जो‌ वृंदावन में तुलसी के रूप में पूजित हैं) बाजू। अंत में अमुक पहेली के अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और‌ पूछता है कि बल विष्णु भगवान जलंधरी राक्षस के‌ ब‌हाने‌ शालिग (शालिग्राम पत्थर), हुए हिरण्यकश्यप के बहाने नर्सिंग (नरसिंह भगवान), तो बल‌ वह तथाकथित खास तीनों (त्रिदेवों) के प्रताप है, तो बताओ कि‌ आस्तीन का बल वह क्या है?

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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