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होमरजा बलमि क्यछौं? पजल-12 जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'. GARHWALI PUZZLE

 


होमरजा बलमि क्यछौं?

पजल-12 जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'.

GARHWALI PUZZLE

राणी    नी     जाणी

बल  च्यूड़ा  बुखौंण

गुयेर     नी    जाणी

भट्ट   भांग   बुखौंण

भांग    मांगु    रबड़ी

  गांजा   मांगु   घ्यू

दारू   मांगु    जुतड़ी

घ्यू स्यू खा म्य्र ज्यू

 

भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) अपनी जन्मभूमि कर्मभूमि उत्तराखण्ड के उतरकाशी जिले और पौड़ी जिले के राठ क्षेत्र की भूमिका स्वरूप अपनी बात को पहेली के प्रथम चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल रानी नहीं जाने, बल च्यूड़ा (भुने हुए चावल के खाजा/स्नैक्स जिनमें अखरोट तिल भांग मिलाकर खाया जाता है, यानी घसियारिनों का जंगल का नाश्ता) बुखौंण (चबाकर खाना), गुयेर (ग्वाले) नहीं जाने, भट्ट (भुनी दाल) भांग बुखौंण (चबाकर खाना), क्योंकि बल भांग मांगे रबड़ी, गांजा मांगे घ्यू (घी), और दारू मांगे जुतड़ी (जूते), तो बल घ्यू (घी) नहीं स्यू (सी, यानी घी का बचा खुचा अवशेष, यानी मयड़ो) खा बल अमुक का ज्यू (दिल)

 

पहाड़ जख  भांग

वखि बल वैकि मांग

मुंड ताळ मथि  टांग

कसरत     उटपटांग

रेश सि भंगोय  वस्त्र

राल सि चरस सर्वत्र

भट्ट बुख्ड़ा दग्ड़ मेल

नितेलो   भंग    तेल

 

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के भ्रामक दूसरे चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल पहाड़ मे जहां भांग, वहीं बल उसकी मांग, यानी भांग सिरफ खाने मदमस्त करने की विषयवस्तु ही नहीं है, अपितु इसके कपड़े थैले भी बनते हैं, और यह पित वात वायु जैसे असाध्य रोगों में औषधीय गुणों से लवरेज है, तो बल इसके सेवन से मुंड ताळ (जमीन पर) मथि (ऊपर आसमान में) टांग, कसकत उटपटांग, यानी इसका भोगी निरोगी और संत योगी होता है, जो अंहकार छोड़ने हेतु, शीर्षासन जैसी उटपटांग कसरत करने में सिद्धहस्त होता है। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल अमुक के रेशे से भंगोय वस्त्र, तने के रालमय रस से चरस सर्वत्र, तो बल उसका भट्ट बुखड़ा (भुने हुए दाल और चावल के चिवड़े/खाजे) के दग्ड़ (साथ) मेल, और नितेलो (यानी जब सरसों का तेल खत्म हो जाता है) तो बल भंगतेल (अमुक के तेल का प्रयोग किया जाता है)

 

जु निप्यौ भांगै कलि

नौना सि नौनि भलि

भांग  खाणु  सौंग

पर  निभाणु  असौंग

लकवासी भंगस्थिति

इनम ज्यौ अतिथि

वुबी झक्वरा झक्वरि

मांगु   भांगै   कट्वरि

 

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में भावनात्मक एवं संवेदनात्मक स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जो नहीं पिए भांग की कली (फूल मंजरी), तो बल उस नौना (लड़के) से नौनि (लड़की) भली,  तो भांग खाना बल सौंग (आसान), पर निभाना असौंग (कठिन), क्योंकि लकवा सी भंगस्थिति, ऐसे में जाए अतिथि, तो बल वह भी नशे में झक्वरा झक्वरि (झूमे झामे), मांगे भांग की कट्वरि (कटोरी/ठंडाई), यानी देवभूमि में 'अतिथि देवो भव' हो, और देवताओं का सोमरस नहीं हो, यह हो नहीं सकता, इसीलिए तो कहते हैं कि बल 'सूर्य अस्त, देवता मस्त'

 

जख्ह्वा इंडियन हैम्प

वख लौ हिप्पी कैम्प

जख भी  फुलांगा

वख भी  कलांगा

तमि ठुंगण्या छटांग

कर्दु दंडवत साष्टांग

भंगदुल्यौं भाग  छौं

होमरजा मिक्य छौं?

 

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए कहता है कि बल जहां होए इंडियन हैम्प, वहां लगाए हिप्पी कैम्प, तो बल जहां भी फुलांगा (अमुक की नर प्रजाति, जिसके रेशे कपड़े यानी भंगेला/भंगोय वस्त्र हेतु बढ़िया होते हैं), तो वहां भी कलांगा (अमुक की मादा प्रजाति, जो रूखे स्वभाव की होने के कारण थैले बनाने के काम में उपयुक्त होती है) अंत में अमुक पहेली के अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि बल वह ठुंगण्या (दांतों से ठूंग कर भूसे को बाहर थूककर गिरी को खाने की विधि) छटांग (छटांक मात्र), करता देवभूमि के देवतुल्य इंसानों को दंडवत साष्टांग (जमीन पर लेट कर सम्पूर्ण समर्पण के साथ प्रणाम), तो बल वह भंगदुल्यौं (भंगेड़ियों/नशेड़ियों) के अहोभाग (सौभाग्य) है, तो बताओ कि होमराजा (सोमराजा, उत्तरकाशी में '' की जगह '' का उच्चारण किया जाता है, देवताओं के सोमरस का राजा) बल वह क्य है?

 

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253

 

नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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