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बग्वालि पींडौ बल मि क्य छौं? पजल-13 जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'. GARHWALI PUZZLE


बग्वालि पींडौ बल मि क्य छौं? 
पजल-13 जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'. GARHWALI PUZZLE

 


कौंणी  कोदो  झंगोरो   धान

सौंगीसार उगौ हल्य किसान

इलैत उत्तमखेती मध्यमबान

अधम चाकरी भीख  निदान

मोटु नाज  गरीब  तैं  पतळो

करदो शरीर तैं  बि  चितळो

इलै त जौंतैं बी आंद असंद

वूं म्वटा सेठौं यु पैलि पंसद


भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) देवभूमि पहाड़ो की असिंचित भूमि में मात्र हलचीरा (हल के दो चार चीरे के बाद हाथ की छोटी कुदाल की मदद से) आसानी से उगने वाले मोटे अनाज के पींडे (इगास-बग्वाल यानी दिवाली के त्योहारों में पशुधनों को दिए जाने वाले पिंड स्वरूप पकवान की भूमिका स्वरूप पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल कौंणी (समा चावल की तरह अनाज) कोदो (मंडुआ) झंगोरो (समा चावल) धान (चावल की फसल), सौंगी सार (आसान तरीके हलचीरे से बगैर ज्यादा हल के यानी मात्र छोटी कुदाल से) उगाए हलधर किसान, इसीलिए तो घाघ (कृषि विशेषज्ञ /भविष्यवाणी वक्ता) की खेती-किसानी की कहावत अनुसार, उत्तम खेती मध्यम बान (ब्यापार), अधम (निम्न) चाकरी भीख निदान (सबसे निम्न स्तर)। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल मोटा अनाज गरीब को पतला, करता है शरीर को भी चितळा (जागरूक), इसीलिए तो जिनको भी आती है हिलने ढ़ुलने में असंद (सांस फूलना/कष्ट महसूस करना), उन मोटे सेठों की यह (अमुक) पहली पंसद। 


बल कोदो सवां  भरदो  पेट

कुधान्य हालात  करदो  टैट

इलै ता बल  गरीब  सुदामा

द्वारिका खुण हुंदो  रैट  पैट

कख चौंल देकी मांड मंगणू

कख चौंल खैकी खांड देणू

बल जैको कृष्ण वैको रामा

ता गरीब किलै  रौ  सुदामा


भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए अपनी बात को पहेली के भ्रामक दूसरे चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल कोदो सवां (समा चावल/झंगोरा) भरता है पेट, कुधान्य हालात करता है टैट, यानी माली हालत खराब करता है, इसीलिए तो बल गरीब सुदामा कृष्ण से शिष्टाचार भेंट मुलाकात एवं सहायार्थ हेतु द्वारिका के लिए होता है रैट पैट (फौजी की तरह बोरिया-बिस्तर बांध कर मिशन पर जाने के लिए तैयार), तो बल कहीं चावल देकर मांड मांगना, यानी सुदामा ने अच्छी चीज देकर संकोचवश कुछ नहीं मांगा, यानी जीरो कीमत का दान मांगा, मगर कृष्ण तो भगवान थे, गरीब मित्र सुदामा की माली हालात भांप गए, तो बल कहीं चावल खाकर खांड (गुड़ का बूरा) देना, यानी श्री कृष्ण ने दो चावल के दाने खाकर दो जहां के वैभव से सुदामा को धन्यधान किया, तो बल जिसका कृष्ण उसका रामा, तो गरीब क्यों रहे सुदामा? 


बल चौंल सेबि बंडी झंगोरो

हुंद सग्वर्या कोदु सेबि गोरो

इलै त  झंगोरौ  द्यूल  पाथो

बोला नातो  बड़ो  य  पाथो

बल मामा कै गौंख्वाला छौं

भणजा मी बड़ी जगौ नीछौं

पुरिया नैथानी बल म्यरु नौ

झंगोरिया नैथाना  म्यरु  गौं


भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल चावल से भी बंडी (अधिक) झंगोरा (समा चावल), होता है सग्वर्या (सभ्य सलीकेदार) कोदे (मंडुवे) से भी गोरा, इसीलिए झंगोरे का द्यूल पाथो (देवालय में अर्पित होने वाले 2 किलो का मापक बर्तन), तो बोलो नाता बड़ा या पाथा। अमुक अपनी बात को पौड़ी जिले के नैथाना गाँव के पुरिया नैथानी (श्रीनगर गढ़वाल के राजा का सुप्रसिद्ध वीर सेनापति, जिसने कठैत मामाओं के आतंक से राजमाता और बालक राजकुमार को अपने गाँव नैथाना में सुरक्षित शरण दिलाने में मदद की), तो बल पुरिया नैथानी से कोई मामा का रिश्ता लगाते हुए पूछता है कि बल मामा किस गौंख्वाला (गाँव मुहल्ले) का है?, तो पुरिया नैथानी उत्तर देते हुए कहते हैं कि बल भानजा वह बड़ी जगह का नहीं है, पुरिया नैथानी बल उनका नाम, झंगोरिया (झंगोरा खाने वाला) नैथाना उनका गौं (गाँव/ग्राम)। 


नैथाना  कु  पुरिया  कठैतौं

नि पैरु जामा  पगड़ी  सीरी

बाड़ि झंगोरु खांदु छौ मैतौ

तबल स्योबी भाग्यसे फीरी

निरभागी झंगोरे  की  घाण

बाजरा बोलु मोटर म जाण

झुंगर्यड़ा झुंगरेटुं  सोरा  छौं

बग्वालि पींडौ बल क्य  छौं?


भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक‌ विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहता है कि बल नैथाना गाँव का पुरिया  कठैतों का, नहीं पहने जामा पगड़ी सीरी (सेहरा), तो बल वह बाड़ी (मंडुवे का फीका हलवा) झंगोरा खाता था मैतौ (मायके का), तो बल वह भी भाग्य से फीरी (फिरा), यानी भाग्य में नहीं रहा। अंत में अपनी बात को पहेली अनुसार कहता और पूछता है कि बल निरभागी झंगोरे (समा चावल) की घाण (एक बार में आसानी से कूटे जाने की मात्रा), तो बल गढ़वाल में जब अन्न की भारी कमी हो गई थी, तब सरकार ने देश से बाजरा भेजना शुरू किया, पर उसे चमोली जिले की औरतों ने लेने से इनकार कर दिया, सरकार को मोटर का किराया भाड़ा भी भारी पड़ने लगा, तब महिलाओं ने ब्यंग में कहा कि बल बाजरा बोले बल मोटर में जाण (जाना है), झुंगर्यड़ा (अमुक के खेत) के झुंगरेटुं (अमुक के परिवार से अलग हुए डंठलों) का सोरा (रिश्तेदार भाई) है, तो बताओ कि बग्वाल (दिवाली में) पींडौ (पशुधनों हेतु अमुक के पिंड स्वरूप पकवान) का बल वह क्या है?


जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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