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खुलो डाकघर बल मि क्य छौं? PUZZLE-34 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE


खुलो डाकघर बल मि क्य छौं?

PUZZLE-34

JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.

GARHWALI PUZZLE

पाड़ौं म नदी  किनर  बट्टा

होंद  छा  पैदल   ग्वरबट्टा

जखी द्वी नदियौं संगम ह्वै

वखी होंदछा मनखी कट्ठा

जखी द्वी मनखी कट्ठा ह्वा

वखी दग्ड़ म सट्टाबट्टा ह्वा

वखी ब्यो का द्वरबट्टा ‌‌ ह्वा

डाक चिट्ठी पत्री कट्ठा  ह्वा


भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) अपनी पौराणिक ओपन बौद्धिक स्थली एवं डाकघर की भूमिका स्वरूप पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल पहले पहाड़ों में नदी  किनारे बट्टा (रास्ते), होते थे पैदल ग्वरबट्टा (जानवरों की पगडंडियां), और जहाँ भी दो नदियों का पावन संगम हुए, वहीं होते थे मनुष्य इकट्ठा, यानी नदियों के संगम पर इंसानी बस्तियों और सभ्यताओं का सामाजिक बौद्धिक सांस्कृतिक साहित्यिक और आर्थिक विकास का जमावड़ा हुआ। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जहां भी दो मनुष्य इकट्ठे हुए, वहीं आपस में सट्टा बट्टा (आचार-व्यवहार का आदान-प्रदान) हुआ, वहीं विवाह के द्वरबट्टा ‌‌(दूल्हे का विवाह के एक दो दिन बाद ही दुल्हन को लेकर ससुराल जाने के रास्ते गुलज़ार) हुए, और इसी तरह डाक चिट्ठी पत्री इकट्ठे हुए। 


पैलि   बद्रीनाथ    मलारी

नि जांद छै  डाक  सवारी

ता जो नंग माथ  मासु नी

ता अमुक गौं माथ गौं  नी

ता नीति कख रैगि  माणा

अर पाड़ कख रैंगि  सैंणा

ता बल यखुला डाकियान

कैं जग डाक बंटणु जाणा


भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के दूसरे भ्रामक चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल पहले   बद्रीनाथ मलारी (चमोली जिले के हिमालयी क्षेत्र के सीमांत गाँव), नहीं जाती थी डाक सवारी, तो देवभूमि उत्तराखण्ड के पहाड़ों के दूरस्थ सीमांत गाँवों के बारे में एक कहावत प्रसिद्ध है कि बल जो नंग माथ (नाखून के ऊपर) मासु नी (मांस नहीं), तो अमुक गाँव के माथ (ऊपर) गाँव नहीं, तो बल नीती गाँव कहाँ रह गया माणा (गाँव), और कहां पहाड़ कहां रह गए सैंणा (मैदानी इलाका), तो बल अकेले डाकिया ने, किस जगह डाक बांटने जाना, यानी एक अकेले डाकिया का दूरस्थ सीमांत गाँवों में डाक बांटने हेतु सभी जगह जाना दुष्कर कार्य होता था। 



भिलंग घाटी को  गंगी  गौं

भगीरथी  कु   धराली   गौं

लिपुलेख  दर्रा  ब्यासी  गौं

दरमा   घाट्यू   नंगुली‌‌  गौं

ऊंटाधुरा   कु   हंगुली   गौं

दानपुर  पिंडारि   झुनी  गौं

उत्तरकाशी   अराकोट   गौं

कख   रवांई   ओसला  गौं

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में संवेदनात्मक एवं‌ भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि  बल चमोली गढ़वाल के सीमांत गाँवों की तरह ही टेहरी गढ़वाल की भिलंग घाटी का गंगी गाँव, भागीरथी घाटी का  मुखवा-धराली गाँव, कुमाऊं मंडल के लिपुलेख दर्रा के पास का ब्यासी गाँव, दरमा घाटी के पास का नंगुली‌‌ गाँव, ऊंटाधुरा के पास का हंगुली गाँव, दानपुर पिंडारी के पास का झूनी गाँव, तो बंगाण उत्तरकाशी जिले का अराकोट गाँव, कहां हरकीदून रवांई में ओसला गाँव। 


ज्ख सर्करी डाकबंगला ह्वा

खुला पत्थर म डाकघर ह्वा

टौंस यमुनौ  संगमरमर  ह्वा

वख चिठ्ठी डाक इकतर ह्वा

बल मि बसगाळ ह्यूंद रूड़

छौं जख यज्ञवेदिका गरूड़

शिलालेखुं बौद्धिकस्तर छौं

खुलो डाकघर बल क्य  छौं?

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए कहता है कि बल जहां सरकारी डाक बंगला (सरकारी अधिकारियों का विश्राम स्थल) हुआ, खुले पत्थर में डाकघर हुआ, तो टौंस और यमुना नदी के संगम पर जो संगमरमर (पत्थर) हुआ, वहां चिठ्ठी डाक इकत्र हुए। अंत में अमुक पहेली अनुसार कहता और पूछता है कि बल वह बसगाळ (बरसात) ह्यूंद (सर्दी) रूड़ (गर्मी), है जहां यज्ञवेदिका गरूड़, तो बल वह शिलालेखों के बौद्धिक स्तर है, यानी अमुक स्थल पर गुप्तकाल (सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त) के शिलालेख का जानपद (जनपद) जनों में सार्वजनिक प्रचार-प्रसार होता रहा है, और भगवान बुद्ध के बौद्धिक विचारों का भी आपसी आदान-प्रदान होता रहा है, तो बताओ कि खुला डाकघर बल क्या है?

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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