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द्यारौ बल मि क्य छौं? PUZZLE-36 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE



द्यारौ बल मि क्य छौं?

PUZZLE-36 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE

कखि औली बुग्याल

छिं  बेदनी   बुग्याल

कखि  द्यारा बुग्याल   

छिं  चोपता  बुग्याल

रैथल    का     राणा

खंदन  घ्युवा   माणा

रंवाइ    का    साणा

देखि   खार   खाणा


भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) अपने खूबसूरत नैसर्गिक बुग्याल (समतल पहाड़ी पठार जो घी दूध दही मखन जैसी दूध निर्मित आठ भोग पकवानों की कामना की पूर्ति करने वाली कामधेनु की चरणस्थली और समसेर/स्मर देवता यानी कामदेव, कृष्ण रुक्मिणी के पुत्र की पर्यटन स्थली जिसमें कामदेव (कृष्ण रुक्मिणी के पुत्र) स्वरूप भंवरें की गोपियों स्वरूप फूलों संग रासलीला, बटरिंग-लीला एवं बटरफ्लाई की डोरी और फूलों के बाणों की आखेट लीला) की भूमिका स्वरूप पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल कहीं औली बुग्याल (चमोली जिले के जोशीमठ शहर से 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित खूबसूरत नैसर्गिक विंटर स्पोर्ट्स उत्सव यानी स्नोस्कींग स्पोर्ट्स के लिए सुप्रसिद्ध स्थल), हैं बेदनी बुग्याल (कर्णप्रयाग-ग्वालदम-मुन्दोली से ऊपर पहाड़ी में 12 किलोमीटर दूर रूपकुंड के रास्ते में खूबसूरत नैसर्गिक पहाड़ी पठार, जहाँ पर झील के किनारे स्थित ब्रह्मस्थली में ब्रह्माजी ने चारों वेदों और 18 पुराणों की रचना की थी), तो बल कहीं द्यारा बुग्याल (उत्तरकाशी जिले के टकनौर क्षेत्र में रैथल बुग्याल से ऊपर द्यारा बुग्याल जो बुग्यालोत्सव, अठड़ोत्सव एवं बटरोत्सव यानी बटर-मलाई और बटरफ्लाई के उत्सव हेतु सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थली), हैं चोपता बुग्याल (गोपेश्वर-उखीमठ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित निहायती खूबसूरत नैसर्गिक पहाड़ी पठार, जो पर्यटन हेतु 'उत्तराखण्ड के स्विट्जरलैंड' के नाम से सुप्रसिद्ध है)। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ते हुए कहता है कि बल रैथल के राणा (राजपूत जाति के गुयेर यानी गोपालक/ पालसी यानी चरवाहे), खाते हैं घी के माणा (आधा किलो लोटे का मापक यंत्र), रंवाई (जौनसार बावर रंवाई क्षेत्र) के साणा (सयाने यानी भंडारी, बर्त्वाल, असवाल रावत तथा कंडारी गुसाईं जाति के लोग), देखकर खार खाणा, यानी गुस्सा कर रहे हैं, यानी एक आंख नहीं सुहा रहे हैं, आंखों में खटक रहे हैं। 


साणा  धाड़ि   मारि

बल  पशुधन   लूटा

अर    राणा   लठैत

वुं सण जांठुन् कूटा

कखौ        दैड़ाधार

कखौ दैड़ा  बिनसर

दैड़ा        उखीमठा

दुध  दै  नौणि  मठ्ठा

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के भ्रामक दूसरे चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल साणा (रंवाई क्षेत्र के तथाकथित सयाने लोग) 'धाड़ि मारि', यानी गुरिल्ला‌ वार की तरज पर लूटमार कर रैथल के राणाओं के पशुधन यानी बहुमूल्य धरोहर को बल लूटा, और राणा लठैत (लाठीबाज), साणा लोगों को जांठुन् कूटा (लाठीचार्ज करके पीटा)। अमुक पुनः अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल तथाकथित 'द्यारा' शब्द फारसी के‌ 'दैर' शब्द से पथ प्रशस्त हुआ है, जिसका अर्थ है मंदिर, यही द्यारा शब्द गढ़वाल में दैड़ा बना, तो बल कहां का दैड़ाधार (पौड़ी जिले पाबौ ब्लॉक के जगमोरा पजलकार के कोटली गाँव स्थित सुप्रसिद्ध बहुचर्चित राठ साहित्यिक और‌ सांस्कृतिक महोत्सव की देवस्थली), तो कहां का दैड़ा बिनसर (पौड़ी राठ क्षेत्र के सुप्रसिद्ध महादेव बिनसर बाबा का देवस्थान), तो दैड़ा उखीमठा (गोपेश्वर-चोपता-केदारनाथ मार्ग पर स्थित केदार बाबा की देव स्थली), दूध दही नौणि (माखन) मठ्ठा। 


जख जख हाथखुट्टा 

प्वड़ीन किरसन का

वखा   का  ग्वरबट्टा

ह्वाई        ब्यड़ापार

जखजख जुट्ठामुट्ठा

प्वड़ीन प्रयटन  का

वखा बल  सुंगर्यट्टा

ह्वाई         बंटाधार

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकालकर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जहां जहां हाथ पैर, पड़े कृष्ण के, वहां के ग्वरबट्टा (पशुओं की चलने की पगडंडियां) का, हुआ बेड़ापार, यानी उस क्षेत्र में फूलों की घाटियां गुलज़ार हैं, फलस्वरूप पर्यटन ट्रैकिंग टूर का विकास हुआ है, यानी क्षेत्र का आर्थिक‌ समाजिक सांस्कृतिक साहित्यिक‌ का चहमुखी विकास हुआ है, और जहां जहां जुट्ठामुट्ठा (जूठा मूठा प्लास्टिक गंध), पड़े पर्यटन के, वहां के बल सुंगर्यट्टा (पेटू संगरों के बाड़ों) का, हुआ बंटाधार, यानी देव स्थली में कुछ मनहूस आदमियों के आने से क्षेत्र की नैसर्गिक खूबसूरती के चार चांद पर प्रतिवर्ष चार हजार दाग लग ही जाते हैं। 


शहरा    ह्वा    ढ़ाबा

द्यारा    ह्वा    काबा

परयटकौं    मतलब

बटरिंग   से    बाबा

दुध  बटर  मलै  धेनु

फुल  बटरफलै  धनु

स्मरौ अठूड़ोत्सव छौं 

द्यारौ बल मि क्य छौं?

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए कहता है कि बल शहर के हों ढ़ाबा, चाहे द्यारा (मंदिर) हों काबा, प्रयटकों का मतलब, बटरिंग से भोले बाबा, यानी बाहरी लोग कामदेव की तरह गोपियों की बटरिंग की आड़ में केदार बाबा की बटरिंग करने से नहीं चूकते, तब से केदार बाबा की जबतक राज नेताओं राज अधिकारियों की तरह बटरिंग न करो, तो नैसर्गिक बुग्यालों में फूलों की बटरफ्लाईंगि भी नहीं होती। अमुक अंत में पहेली के अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि बल दूध बटर मलाई की धेनु (कामधेनु), तो फूल बटरफलाई के धनु (धनुष, यानी कामदेव बटरफ्लाईयों यानी तितलियों की डोर और फूलों के कोमल बाणों से चमोली की जुन्याली यानी चांदनी चांद यानी गोपेश्वर की चंदा गोपियों और पौड़ी की चौंदकोट्या बिगरैली बांद, यानी चौंदकोट क्षेत्र की खूबसूरत गोपियों के संग रासलीला का उत्सव मनाए), तो वह बल स्मरौ (समसेर देवता/कामदेव/लवगौड) का अठूड़ोत्सव (दूध के आठ सिद्धहस्त पकवानों का बटर उत्सव) है, तो बताओ कि द्यारा का बल वह क्या है?

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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