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बद्रीकेदारौ बल मि क्य छौं? PUZZLE-35 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE


बद्रीकेदारौ बल मि क्य छौं?

PUZZLE-35

JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.

GARHWALI PUZZLE

ज्यै थानमा शिवजि  गौरा

देणु  कु  देव  दर्शन  ठौरा

वै थात मा स्थापित  ह्वैनि

चबूतरा     चौंरी      चौंरा

गौचर    कामधेनु    चौरा

स्थापित ह्वै वख इंद्रचौरा

चम्पावत मा चम्पा भोरा

स्थापित  ह्वै  राणी  चौंरा

भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) देवों के देवदर्शन, राजाओं के हंसन्याय, राजादेश प्रसारण स्थल, यात्रियों की विश्राम स्थली और देवभूमि उत्तराखण्ड के बावन गढ़ों के वीरभड़ों की धै (बुलंद आवाज) की धार्मिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक विधि विधान से स्थापित अपनी गौरवमयी स्थली की भूमिका स्वरूप पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जिस थान (विशेष स्थापित स्थान) में शिवजी गौरा, देने को देव दर्शन ठौरा (ठहरे), उस थात (देवस्थान) में स्थापित हुए, चबूतरा चौंरी चौंरा, तो बल गौचर (रुद्रप्रयाग जिले का सुप्रसिद्ध बुग्याल यानी समतल पठार, जहां गायें चरती हैं) में कामधेनु (क्षीर सागर मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक गाय जो हर कामना पूरी करने के लिए सिद्धहस्त है, जिसे इंद्र को दिया गया था) चौरा (घास चरा करती थी), स्थापित हुआ वहां इंद्रचौरा, तो बल चम्पावत (कुमाऊं मंडल के जिले) में चम्पा के भोरा (सान्निध्य में), स्थापित हुए राणीचौंरा (रात की रानी से सुशोभित इंद्र की राणी के ठहरने का देवस्थान)। उत्तराखंड में चौंरी/चौंरा नाम से अन्य प्रसिद्ध स्थान हैं मेहलचौंरी, देहलचौंरी,  डांगचौंरा, कुमांचौरा, चौचौंरा, चौंरातोक, चौंरासैंण, चौंराकोट, सौंसुली चौंरा (रुद्रप्रयाग को पुराना नाम) और दत्ताचौंरा (दत्ताखेत देवलगढ़ का पुराना नाम)। 


इंद्रै   चिट्ठी   तैं   कबूतरा

बंटद छया  ज्यै  चबूतरा

त  बल वै  तैलीहाट  मा 

स्थापित ह्वै इंद्र  चबूतरा

तबल ज्यैन मान नामान 

बोलि  मि  तेरो  मेहमान

मारि  बांधी   मुसलमान

थैलिसैंण  कब्र  चबूतरा

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल‌ में फंसाते हुए पहेली के भ्रामक दूसरे चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल राजा इंद्र की चिट्ठी को कबूतरा (कबूतरी देवी का आदमी), बांटता था जिस चबूतरा, तो बल उस तैलीहाट (कत्यूर घाटी) में, स्थापित हुआ इंद्र चबूतरा, तो बल जिसने मान ना मान, जोर जबरदस्ती में बोला तेरा (अमुक का) मेहमान, 'तो मार बांधकर शिवजी ने जबरदस्ती मुसलमान, बनाया गढ़भाषा को भसम करने वाले तथाकथित भष्मासुर को थैलिसैंण (पौड़ी के राठ क्षेत्र) कब्र चबूतरा, तथाकथित स्थान में शिवजी का त्रिशूल भी स्थापित है'। 


जो बल  देवड़  शेवड़ोन 

करि  देवरा  चंवरा  देश

ता बल वों जागा थातन

करी गाँव गढ़ों को  देश

रौथान  मेरा   थान   मा

बेकसूर हुणै कसम  खा

त वु चांदपुर चौथान मा

बल गढ़भासै भसम खा

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल‌ से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को रंवाई अंचल में प्रसिद्ध उक्ति के अनुसार आगे बढ़ाते हुए कहता है कि जो बल 'देवड़ शेवड़ो (वीरभड़ों) ने, किए स्थापित देवरा चंवरा (देवमंदिर चौंतरे/चबूतरे) देश, तो बल उन जागाथातन (गाँवों के मूलस्थान) ने, स्थापित किया गाँव गढ़ों का देश (बावन गढ़ों का हिमालय का गढ़गौरव देश, यानी देवभूमि उत्तराखण्ड)'। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल रौथान (उत्तराखंड की राजपूत जाति का इंसान) मेरा (अमुक के) थान (हंस न्यायोचित्त यानी दूध का दूध पानी का पानी करने वाले विक्रमादित्य सिंहासन सिद्धहस्त स्थापित स्थान) में, बेकसूर होने की कसम खाए (यानी 'अमुक स्थली में खाई गई कसम गीता पर हाथ रखकर खाई गई कसम के बराबर कानूनी मान्यता प्राप्त है'), तो वह चांदपुर चौथान (पौड़ी जिले के राठ क्षेत्र के गाँव की अमुक न्याय सिद्धहस्त स्थापित स्थली) में, बल गढ़भासा की भसम खाए, यानी 'गढ़वाली‌ और कुमाऊंनी गढ़भाषाओं को भारत देश के संविधान की 8वीं अनूसूची में स्थापित करने के लिए शिवजी के सान्निध्य में भस्मीभूत होकर भीष्म प्रतिज्ञा का तीलू रौतेली (उत्तराखंड की रानी लक्ष्मीबाई के नाम से सुप्रसिद्ध वीरांगना) सिद्धहस्त 'तीलू धारू बोला' का दृढ़ संकल्प करे'। 


जखबटैकी धै लगौ भड़

त वख ही थर्पैग्यैनी गढ़

बल जनी राजा गढ़ी मा

हंसन्याय देवल गढ़ी मा

हूंद छौ  धरमौ  प्रसारण

बल तनी जोगी मढ़ी मा

नैथानी  कु  नैथाना  छौं

बद्रीकेदारौ बल क्य  छौं?


भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए कहता है कि बल जख बटै की (जहाँ से शेर की तरह बुलंद आवाज) लगाए भड़ (गढ़वाल का योद्धा), तो वहीं‌ थर्पैग्यैनी (स्थापित हुए) बावन गढ़ (जैसे रैंकागढ़, बनगढ़, नैखरीगढ़, काण्डीगढ़, जौरासी गढ़, नवोरगढ़़)। अमुक गढ़वाल की एक और कहावत के अनुसार अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जैसे राजा गढ़ी में, हंसन्याय देवल गढ़ी में, होता था सनातनी धरम का प्रसारण, बल वैसे ही जोगी मढ़ी में। अंत में अमुक गढवीर पुरिया नैथानी को श्रद्धांजलि देते हुए पहेली के अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि पुरिया नैथानी का बल वह नैथाना (पौड़ी जिले का गाँव) है, तो बताओ कि बद्रीकेदार की सदावर्त (पके भोजन के दान की देवस्थली) बल वह क्या है?

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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