रिंगण्यक्रांत्यु बल मि क्य छौं?
PUZZLE-28
JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.
GARHWALI PUZZLE
जौं का हतुं म फैल
वूं कि हि डैल फैल
जौं का हतुं मु-बैल
वूं कि हि चैल पैल
जनि भैजि ग्यैं दून
त भौजिन कै फून
बल ह्ये जि कम सून
रुटि द्वि जून न चून
भावार्थ
अलाणा-फलाणा (अमुक) अपनी आधुनिक रिंगण्य (चलायमान) क्रांति की भूमिका स्वरूप पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जिनके (सरकारी बाबुओं) के हाथों में फैल (फाइल), बल उनकी ही डैल फैल (फुल मौजमस्ती), यानी उनकी चारों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाई में, और जिनके (किसानों के) हाथों में बैल, उनकी ही चैल पैल (चहल-पहल), यानी उनके ही बीसियों बसंत बहार, उनके ही छप्पन भोग के बग्वाळ (दीपावली), मगर जैसे ही भैजि (भाई साहब) पलायन करके गए दून (देहरादून), तो भौजिन (भाभी) ने किया फून (टेलीफोन), बल हे जी (आदरसूचक शब्द सहित)! कम सून, गाँव में चलायमान क्रांति के चक्कर में रोटी दो जून (दो वक्त की) न ही चून (आटा), यानी गाली में लाटा (भोले भाई साहब) लाल पीला, और कंगाली में भाभी का आटा गीला।
भानुमत्यु पिटारा
च इंसान खटारा
त ज्ञान कु पिटारा
चलि उंगल्युं इशारा
चल म्येरा साथी
चल म्येरा हाथी
खटारा खींचि की
पिटारा सींचि की
भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के भ्रामक दूसरे चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल भानुमती का पिटारा (अटरम-सटरम, सभी किस्म की आवश्यक चीजों का पिटारा), है इंसान खटारा, तो ज्ञान का पिटारा, चले उंगलियों के इशारा, तो बल चल मेरे साथी, चल मेरे हाथी (हाथ का हथियार), इंसानी खटारा खींच कर, ज्ञान का पिटारा सींचकर।
अकल अर उमर की
बल भेंट नी होंद
असुर अर ससुर की
ससभेंट नी होंद
ससभेंट म मुबैल
निमिल पर्सनल फैल
सासु ब्वदि बेटि सण
सुणांदी ब्वारि सण
भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकालकर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल अकल और उमर की, बल भेंट नहीं होती, यानी इंसान को अकल मरते दम तक नहीं आती, तो बल असुर (राक्षस) और ससुर की, ससभेंट (नई नवेली दुल्हन द्वारा सास को दी जाने वाली प्रथम भेंट) नहीं होती, तो बल सास कहती है कि बल ससभेंट में मुबैल (मोबाइल), नहीं मिली पर्सनल फैल (दान-दहेज बैंक प्रापर्टी की फाइल), तो बल सास बोलती बेटी को, पर सुनाती ब्वारि (बहू) को, यानी 'कहीं पर तीर कहीं पर निशाना, बेटी के बहाने बहू को सताना'।
घड़ी छुटि ट्रेन छुटि
डैरि छुटि पेन छुटि
रेडु टीवी न खत
इंसानी चैन लुटि
बल मि हि ट्यूटर छौं
मि हि कमप्यूटर छौं
बिन बैटर्यु गैळ छौं
रिंगण्य क्रांत्यु क्यछौं?
भावार्थ
अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहता है कि बल घड़ी छूटी ट्रेन छूटी, डायरी छूटी पेन छूटा, तो बल रेडियो टीवी न खत, इंसानी चैन लूटा। अंत में अमुक पहेली के अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि बल वह ही ट्यूटर है, वह ही कमप्यूटर है, बिन बैटरी कै गैळ (सुस्त) है, यानी बिन बटरिंग के इंसान क्या ढ़ांगा भी गैळ हो के पड़ जाता है दूसरे फांगा (खेत), यानी दिवंगत चंद्र सिंह राही की सुपरहिट गायकी में, ढ़ांगा रे ढांगा रे, न जा पल्या फांगा, तो 'बताओ कि आधुनिक रिंगण्य क्रांत्यु (चलायमान क्रांति) का बल वह क्या है?
जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'
प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार
मोबाइल नंबर-9810762253
नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है
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