Advertisement

ड्येढ़ फुटै पिठुड़ी बल मि क्य छौं? PUZZLE-27 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE


 ड्येढ़ फुटै पिठुड़ी बल मि क्य छौं? 

PUZZLE-27

JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.

 GARHWALI PUZZLE

बल सृष्टिकर्ता जळड़मा होंदन

इलै   ब्रह्म   नींवाधार    होंदन

पालनकर्ता  तना   मा   होंदन

इलै विष्णु  जिवनाधार  होंदन

संहारकर्ता‌   टुकुळ  मा  होंदन

इलै   शिव   मोक्षाधार   होंदन

कुंडली क्यद्यखणै मुंडली देख

जळड़ी क्यद्यखणै पिठुड़ी देख

भावार्थ

अलाणी-फलाणी (अमुक) त्रेतायुग की एक सुपात्र मंथरा‌ दासी (जिसकी ऊंट की तरह टेड़ी चाल चलने हेतु भगवान श्री राम ने, 'आ बैल मुझे मार' के लोक कल्याण सिद्धांत हेतु, कूबड़ भेंट स्वरूप प्रदान की थी, ताकि रिटर्न गिफ्ट में वह माता कैकेयी के मन को पजल की भांति भरमाकर खुद के हेतु चौदह वर्ष का वरदान प्राप्त कर सके, और रावण का वध करके तीनों लोकों में शांति स्थापित कर सके) की और राम‌ द्वारा शापित अहिल्या (सनातन धर्म की कथाओं में वर्णित एक स्त्री पात्र हैं, जो गौतम ऋषि की पत्नी और ब्रह्माजी की मानसपुत्री थी। ब्रह्मा ने अहिल्या के विवाह हेतु एक शर्त रखी थी, जो सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण कर आएगा, वही अहिल्या का वरण करेगा। इंद्र अपनी सभी चमत्कारी शक्ति द्वारा सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण कर आये। लेकिन तभी नारद ने ब्रह्माजी को बताया की ऋषि गौतम ने इंद्र से पहले किया है। नारदजी ने ब्रह्माजी को बताया कि अपने दैनिक पूजा क्रम में ऋषि गौतम जब गाय माता की परिक्रमा कर रहे थे, तब गाय माता ने बछडे को जन्म दिया। वेदानुसार इस अवस्था में गाय की परिक्रमा करना त्रिलोक परिक्रमा के समान मानी जाती है। इस तरह माता अहिल्या की शादी अत्रि ऋषि के पुत्र ऋषि गौतम से हुई। गौतम ऋषि सुबह नित्य कर्म हेतु जब नदी में गए, तब ऋषि के भेष में इंद्र घर में घुसे और अहिल्या से परिणय की नाकाम कोशिश करने लगे, तो गौतम ऋषि ने इंद्र की गलती पर पहले इंद्र को शाप दिया और फिर पत्नी अहिल्या को शिला के स्वरूप में शापित होने के साथ-साथ त्रेतायुग में भगवान श्री राम के चरणों की कृपा से जीवंतता प्राप्त करने का भी‌ वरदान दिया) की आधारभूत भूमिका स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती है कि बल सृष्टिकर्ता पेड़ की जळड़ (जड़) में स्थापित होते हैं, इसलिए ब्रह्माजी नींव के आधार स्तम्भ होते हैं, तो पालनकर्ता तने में स्थापित होते हैं, इसलिए विष्णु जी जीवन‌ के आधार स्तम्भ होते हैं, और संहारकर्ता‌ टुकुळ (पेड़ के ऊपरी भाग) में स्थापित होते हैं, इसलिए शिवजी मोक्ष के आधार स्तम्भ होते हैं, तो बल कहावत के अनुसार कुंडली क्या देखनी मुंडली देखो, यानी जेंटलमैन की पहचान बालों की साज सज्जा से ही हो जाती‌ है, और बल जळड़ी (जड़) क्या देखना पिठुड़ी (पेड़ की बैकबोन) को देखो, यानी सीधी मजबूत बैकबोन से ही इंसान के शरीर के अच्छे चालचलन का पता चलता है, यानी सतरंज में ऊंट की तिरछी चाल और रामायण में मंथरा दासी की कुटिल चाल सर्व विदित है। 


जु शरील फर लगी जावो कीड़

त क्या जि  करो  देवदार‌  चीड़

पति  गौतम  ह्वै  जावो ‌‌‌ अरीड़

त क्वो तारो अहिल्या की पीड़

बल अंगद का खुट्टा धरा पकड़

छा रावणा मुंड अगस्या अकड़

त बगैर रीढ़कि कुबड्या जकड

छै मंथरा की बल टिक्वा पकड़

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के दूसरे भ्रामक चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती है कि बल जो शरीर पर लग जाए कीड़ (कीड़ा), तो क्या जी करे देवदार‌ चीड़?, और पति गौतम हो जाए ‌‌‌अरीड़ (बगैर बैकबोन, यानी आधार स्तम्भ पत्नी) के, तो कौन तारे अहिल्या की पीड़ (सर्वाइवल पीड़ा)? अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहती है कि बल अंगद के पैर धर‌ती पकड़, थे रावण के सिर अगस्या (सातवें आसमान के घंमड) की अकड़, तो बगैर रीढ़ की कुबड्या (कूबड़ वाली) जकड, थी मंथरा‌ दासी की बल टिक्वा (लकड़ी के सहारे) की पकड़। यानी कूबड़ शरीर को मजबूत लकड़ी यानी विष्णु स्वरूप मजबूत आधार स्तम्भ के सहारे की जरूरत होती है। 


बल कुबड्या ऊंट सि टेड़िचाल

चलिकी लमडदन भीटा भ्याळ

त किदळो करो  गुरो  की  सौर

अर बल तकणै तकणैकी म्वौर

बल जौं की  क्वी  बैकबोन ‌ नी

त  वूं  को  रखवाला  बल  राम

ज्यैं  की  हूंण  खाणै  जोन  नी

अहिल्यै अधार शिला भी  राम

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के तीसरे ज्ञानमयी चरण में अपनी बात को संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप आगे बढ़ाते हुए कहती है कि बल कुबड्या (कूबड़ वाले) ऊंट जैसी टेड़ी चाल, चलकर लमडदन (गिरते हैं) भीटा भ्याळ (पहाड़ी ढ़लाने/खाई में), तो बल बगैर बैकबोन के किदळो (केंचुआ) करे गुरो (सांप) की सौर (नकल), और बल तन तन के चलने की अकड़ में म्वौर (मरा), तो‌ बल जिनका कोई आधार स्तम्भ ‌नहीं, तो‌ उनका रखवाला बल राम, और जिनकी होने-खाने की जोन (जीवन राशि) नहीं, तो बल ऐसी अभागी अहिल्या की आधारशिला भी राम। 


मेरूदंडा     भित्र  ‌    मेरूनाल

करु मेरू दंड म कूबड़  बवाल

अर   मेरूनाल   म   मेरूरज्जु

ह्वैजावो सर्वाइकलम निकज्जु

गुदी से लेकर  बल  गुदा  तक

गुंठी ब्यास मा ड्येढ़ फुटा तक

मि तेतीस पैड्युं बल सीड़  छौं

ड्येढ़ फुटै पिठुड़ि बल क्य छौं?

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए दासी मंथरा के कथनानुसार आगे कहती है कि बल मेरूदंड (बैकबोन) के भीतर मेरूनाल (नली), करे मंथरा दासी के दंड में कूबड़ बवाल, और मेरूनाल में मेरूरज्जु, हो‌ जाए सर्वाइकल में निकज्जु। अंत‌ में अमुक पहेली के अनुसार प्रश्नात्मक‌ शैली में कहती और पूछती है कि गूदी (दिमाग यानी सिर के पीछे के भाग) से लेकर बल गुदा (मूलाधार चक्र) तक, गुंठी (अंगूठी) के ब्यास में ड्येढ़ फुट तक, वह (अमुक) तेतीस पैड्युं (पायदान) की बल सीड़ (सीढ़ी) है, तो बताओ कि‌ ड्येढ़ फुट की‌ पिठुड़ि (पीठ की हड्डीनुमा चुटिया) बल वह क्या है?


जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:-पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

Post a Comment

0 Comments