भादौं भदोल्या बल मि क्य छौं?
PUZZLE-26
JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.
GARHWALI PUZZLE
काग चेष्टा वको ध्यानम
अर अल्पहारी स्वान निंद्रम
त गृहत्यागी युधिष्ठिर जनम
विद्यार्थी का पांच लक्षणम
त बल जो भी सत्यार्थी ह्वा
वु युधिष्ठिर जन धर्मार्थी ह्वा
दगड़ म स्वान हंस काग ह्वा
त ज्युंदो स्वर्गौ विद्यार्थी ह्वा
भावार्थ
अलाणा-फलाणा (अमुक) त्रेतायुग में लोमेश ऋषि के शिव जी द्वारा शिव भक्ति के अनादर हेतु शापित होकर सर्प जोनि में हजार जीवन जीने के बाद काकभुशुण्डि (रामभक्त, जिन्होंने बालपन में राम के हाथ से रोटी का निवाला छीन था, कवि रसखान के भाव में, 'काग के भाग बड़े रे सजनी/हरि हाथ सो ले गयो माखन रोटी', और जिसने कौवे के रूप में गरूड़ को रामायण की कथा सुनाई थी) की भूमिका स्वरूप अपनी बात को धर्मराज युधिष्ठिर के संग क्षीरसागर से अमृत लाने के ऋषि आदेश से स्वर्गारोहण की यात्रा का जिक्र करते हुए पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल चाणक्य की नीति के अनुसार बल काग जैसी चेष्टा (कि कैसे सुराही में कंकड़ डालकर पानी के धरातल को ऊपर उठाकर प्यास बुझाई जा सकती है?), वको ध्यानम (कैसे बगुला/हंस एक पांव पर एकाग्रचित्त होकर तालाब में मछली फांस लेता है?), और अल्पहारी (ताकि किसी लंबे कामयाबी के मिशन के दौरान खरगोश जैसे नींद न आए, और धीमी गति वाला कछुआ भी जीत जाए), स्वान निंद्रम (कि कैसे जरा सा भी खटका होने पर तुंरत जागकर मालिक/इलाके की रक्षा करनी है?), तो बल गृहत्यागी युधिष्ठिर जैसे में, विद्यार्थी के पांच लक्षणम, यानी युधिष्ठिर के पांच लक्षणों में सच्चे विद्यार्थी/सत्यार्थी/धर्मार्थी की सिद्धहस्त परिपूर्णता रही), तो बल जो भी सत्यार्थी हुआ, वह युधिष्ठिर जैसा धर्मार्थी हुआ, और स्वर्गारोहण में साथ में स्वान हंस और काग हुए, तो वह ज्युंदो (सशरीर) स्वर्ग का विद्यार्थी हुआ, यानी स्वर्गारोहण की यात्रा पांडवों में केवल युधिष्ठिर ही सशरीर कर पाए थे, बाकी सभी बीच रास्ते में स्वर्ग सिधारते गए। युधिष्ठिर के कथनानुसार सबसे पहले द्रोपदी का स्वर्गवास होने का कारण था कि उनके मन में अर्जुन के प्रति प्रतिकूल भाव थे, यानी वह काग चेष्टा और वको ध्यान में सिद्धहस्त नहीं थी, इसके बाद सहदेव के स्वर्गवास होने का कारण था कि उनमें घंमड था कि उनके बराबर पांडवों में ज्ञानी कोई नहीं, तो जहां घमंड सिर पे सवार हो, तो वको ध्यान का कहां सवाल?, इसके बाद नकुल अपनी चंचलता और शैतानी की वजह से, तो भीम अपने बलशाली होने के घंमड और अधिक खाने की वजह से, और अर्जुन का यह घंमड कि उससे बढ़ा कोई धनुर्धर नहीं (जबकि यह सिद्धहस्त है कि कर्ण अर्जुन से भी बढ़िया धनुर्धर थे), के कारण क्रमशः एक एक करके स्वर्ग सिधारते गए। यानी केवल युधिष्ठिर में ही विद्यार्थी के पांच लक्षण विद्यमान थे, जो उन्हें सशरीर स्वर्ग की यात्रा करवाने में सफल कर गए।
बल वु क्यां को ह्वाई कुकुर
जु गुसैं दगड़ जाणो मुकुर
त बल जख जावो विद्यार्थी
वख हंस बणि जावो सार्थी
बल ऋषिन बोली काग से
ल्हौ अमृत क्षीरसागर से
चेष्टावान युधिष्ठिरा भाग से
त नि प्यीण अमृत गागर से
भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए अपनी बात को पहेली के दूसरे भ्रामक चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल वह किस बात का हुआ कुकुर (स्वान), जो अपने गुसैं (मालिक) के साथ जाने में मुकुर (आनाकानी करे), तो बल जहां जाए विद्यार्थी, वहां हंस बन जाए कृष्ण जैसा अर्जुन का जैसा सार्थी (सारथी/मार्गदर्शक)। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल ऋषि ने बोला काग से, लाओ अमृत क्षीरसागर से, चेष्टावान (काग सिद्धहस्त गुण से परिलक्षित) युधिष्ठिर के भाग से, पर बीच में नहीं पीना अमृत गागर से।
बल पैरी की कंसै खाल
चलि स्वेत काग हंसै चाल
त अपण बि भूली ढ़ंगचाल
ह्वेगि अमृत छकी खौकाल
बल कांव कांव कव्वारोळि
शुरू ह्वैगी ऋषि की खोळि
इकमुठ इकजुटै दिखैशक्ति
कैगिं भाग पितृश्रादै भक्ति
भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे में संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल युधिष्ठिर की तथाकथित स्वर्गारोहण की यात्रा में, बल पहनकर कंस की खाल, चला स्वेत काग (पहले कौआ सफेद था) हंस की चाल, तो अपनी भी भूलकर ढ़ंगचाल (चालचलन), हो गया लालच वश बीच रास्ते में ही अमृत छककर खौकाल (मांसाहारी काल)। यानी काग बेसक अमृतपान करके अमरता को प्राप्त कर गया, लेकिन गुरु ने आदेश की अवहेलना पर दंड स्वरूप उसे अपने कमंडल के काले पानी में डुबाकर उसका तन मन धन सफेद से काला कर दिया, तो बल काले तन वाले राक्षसों, काले मन वाले सिरफिरे लोगों और काले धन के भृष्टाचारियों के अलावा कोई भी कौओं की पूजा नहीं करे, तो बल कांव-कांव कव्वारोळि (कौओं का असहनीय कर्कश शोरगुल), शुरू हो गया ऋषि की खोळि (यानी ऋषि के मुहल्ले में हड़ताल), तो एकमुठ एकजुट की दिखाकर शक्ति, कर गए अभागे कौए अपने भाग पितृश्राद की भक्ति, यानी पूरे साल काग को निरादर के भाव से देखा जाता है, लेकिन ऋषि के आशीर्वाद से फलित होकर भादों माह के कृष्ण पक्ष के 16 दिन पित्रश्राद्धों में कौओं की 'पांचों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाई में होता है', यानी पूरे साल की रही सही कसर भादों के 16 दिनों में ही पूरी हो जाती है।
बल जु भै-बंदौ म्वन्नो डांड
प्वड़ि मुंड मुंडा दां ही ढ़ांड
त ज्युंदा मा नि द्याई मांड
अर म्वन्ना मा द्याई खांड
मि यमराज को प्रतीक छौं
काकभुशंडिको लड़ीक छौं
लोमेश ऋषि का भाग छौं
भादौं भदौल्या बल क्यछौं?
भावार्थ
अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं का जिक्र करते हुए आगे कहता है कि बल पांडव भाई बंधुओं के स्वर्गास होने के तत्पश्चात परिक्षित (अर्जुन के प्रपोत्र यानी अभिमन्यु के पुत्र जिसके हवाले पांडव स्वर्गारोहण की यात्रा पर जाने से पहले अपना राजपाट कर गए थे) के डांड (कर्मकांड करने का दंड), पड़ा मुंड (सिर) मुंडाते ही ढ़ांड (ओले), तो बल ज्युंदा मा (जीते जी) नहीं दिया मांड (चावल का पानी), और मरने में दिया खांड (गुड़ का बूरा), यानी जीते जी इंसान माँ बाप की कोई कदर नहीं करता, मगर मरने के बाद पित्रदोष से बचने की खातिर तेरहवीं, पितृश्राद्ध में दिल खोलकर भंडारा लगाने में लगा रहता है, हर किस्म के कर्मकांड करता रहता है। अंत में अमुक पहेली के अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि बल वह यमराज का प्रतीक है, यानी घर की मुंडेर पर कौए की कांव कांव, यमराज को बुलाने का इशारा होता है कि आंव आंव, यानी यमराज को कांव-कांव की ईको-ध्वनि में आंव-आंव सुनाई देता है, जो अशुभ माना जाता है, वह तथाकथित काकभुशंडि का लड़ीक (पुत्र) है, वह तथाकथित लोमेश ऋषि के जप तप के भाग (अहोभाग्य) है, तो बताओ कि भादों का भदौल्या (जिसकी पांच उंगलियां घी में और सिर कढ़ाई में होता है, ऐसे कढ़ाई मास्टर) का बल वह क्या है?
जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'
प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार
मोबाइल नंबर-9810762253
नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है
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