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सांकरौं द्यो बल मि क्य छौं? PUZZLE-29 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE


सांकरौं द्यो बल मि क्य छौं? 

PUZZLE-29

JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.

GARHWALI PUZZLE

जनि कुमाऊं  मा झांकर

तनि गढवाल मा खांकर

अर  जनी‌‌  खेत  ‌खांकर   

बल  तनी  सैंण   सांकर

जु राजस्थान मा कांकड़

वु  गढवाल  मा  खांखड़

जनी बजीं बल्दा खांखर

तनी भजीं घ्वीड़ काखड़

भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) उत्तराखंड देवभूमि में स्थापित वन खेत गाजी-पाती (पशुधनों) के‌ रक्षक देवता की भूमिका स्वरूप पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जैसे कुमाऊं में झांकर (बागेश्वर जिले में खांकर नाम से पूजित देवता), वैसे ही गढवाल में खांकर (गढ़वाल में खांकर नाम के अनेक स्थान हैं, श्रीनगर रुद्रप्रयाग रोड़ मार्ग में खांकरा, टिहरी जिले के नागणी घाटी के पास खांकर, असवालस्यूं पट्टी पौड़ी गढ़वाल में रौतेला गाड के शीर्षभाग में खांकर, रुद्रप्रयाग के गुप्तकाशी के पास सड़क मोड़ का नाम खांकरा, आदि बदरी क्षेत्र में तोपगांव-जगड़गांव के ऊपर खांकर, बधाण क्षेत्र में पिंडर तट के पास खांकर, कीर्तिनगर में खांकर देवता का स्थान, खनसर क्षेत्र के खनसारी डांडा में खांकर देवता यानी पशुओं के गले की घंटियों से सुशोभित देवता, गैरसैण क्षेत्र में स्यूणी तल्ली गाँव में 12 वर्ष बाद होने‌ वाला खांकर मेला), जहां खेत ‌खांकर (खांकर देवता की पूजा हेतु देखते हैं कि मंदिर में लगी न्याय की जंजीर (सांकल) खुली तो नहीं, अगर खुली है, तो दोष निवारण हेतु पूजा भंडारे का आयोजन किया जाता है), बल वैसे ही सैंण सांकर (यानी सांकर‌ सैंण, राठ क्षेत्र में‌ पाबौ ब्लॉक में बाली कंडारस्यूं पट्टी सांकर सैंण एक सुप्रसिद्ध क्षैत्र है, जहां अलाव-बिलाव यानी बाघ-लोमड़ी को भगाने हेतु निमित्त देवता स्वरूप पेड़ पर सांकल यानी जंजीर ठोकी जाती है, सांकल से सांकर/सांकर सैण दोनों ही परिभाषित हो रहे हैं), तो बल जो राजस्थान में कांकड़, वह गढवाल में खांखड़, तो बल जैसे ही बजे बैलों के खांखर (गले की घंटियां), वैसे ही भागे घ्वीड़ (कस्तूरी मृग) काखड़ (हिरन)। 


जु घ्वीड़  तैं  चांठु  प्यारो

काखड़   तैं  कांठु  प्यारो

त खिंकर तैं  खाडु प्यारो

खांकर  तैं   बांठु   प्यारो

त जन्नी  तान  तन्नी  तून

त जन्नी खाडु तन्नी‌‌  ऊन

बल खांकर हाडु नी खा

क्वी कनमा खाडु तैं खा

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के दूसरे भ्रामक चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जो घ्वीड़ (कस्तूरी मृग) को अपना चांठु (चट्टानी बीहड़ आवास) प्यारा, तो काखड़ (हिरन) को अपना कांठु (हिमालयी बर्फीला जंगल) प्यारा, यानी सबको अपना ही घर, चाहे वह कैसा भी हो, पसंद आता है, तो खिंकर (संस्कृत में लोमड़ी) को खाडु (भेड़ा) प्यारा, खांकर देवता को अपना बांठु (रोट प्रसाद का हिस्सा) प्यारा, तो जैसी तान वैसी तून (पशुओं का बौराना/ऋतु भाव में आना), तो जैसा खाडु (भेड़ा) वैसे ही ऊन, यानी सर्या ढ़िबरी मूंडी मांडी, आखिर दौं लराट कराट, यानी हाथी निकल गया पूंछ बाकि रही, तो आखिर वक्त में बौराना, तो बल खांकर देवता हाडु (हड्डी) नहीं खाए, क्योंकि‌ वह सात्विक यानी रैंका देवता है, तो फिर कोई कैसे में खाडु (भैड़ा) को खाए?, यानी न खुद खाए, न‌‌ किसी और को ही खाने दे।


रैंका   सणी   रोट   भेलु

चैंदु  खांकर  सणी  मेलु

स्याळुं भाग  मेलु  पाका

द्विद्विदाणि सबुंन चाखा

जौंका तन म घना बाळ

वो या  ता  चौंर्या  स्याळ

या फिर  वो  चौंर्या  गाय

याता ऋषि लोमश ह्वाल

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के‌ मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के‌ ज्ञानमयी तीसरे चरण में संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल रैंका (सात्विक देवता) को रोट भेलु (ढ़ाई किलो गुड़ का प्रसाद), चाहिए खांकर देवता को मेलु (नाशपाती जैसे फल जो सियार/लोमड़ी को पसंद हैं, का फलाहार), तो बल स्याळुं (सियारों) के भाग मेलु पके, दो-दो दाने सबने चखे। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जिनके तन में घने बाल, वे या तो चौंर्या स्याळ (सियार‌ जिनकी पूंछ मोटी घने बाल वाली होती है, जिसे देखना अशोभनीय माना जाता है), या फिर वह चंवरी गाय (याक), या तो ऋषि लोमश ह्वाल (होगा)। 


ऋषिलोमश ध्यावू शंकर

यनु  द्ये  द्यावा  बल   वर 

आखिर बाळतक सांकर

ह्वैजावुं अमर मि  खांकर

जब दशरथन् मोरि जाण

कोपभवन  किलै  बनाण

खांकरौं  द्यो  खांकर  छौं 

सांकरौं द्यो बलमि क्यछौं?

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक‌ एवं गुणात्मक विशेषताओं का जिक्र करते हुए आगे कहता है कि बल ऋषि लोमश (जिनके शरीर में लोमड़ी/भेड़ा की तरह घने बाल थे) ध्यावे शंकर, कि प्रभु ऐसा दे दीजिए बल वर, आखिरी बाल तक सांकर (सांकर सैंण), हो जाए अमर वह खांकर, शिव के आशीर्वाद से फलित लोमश ऋषि का एक बाल कई सालों के बाद झड़ता है, यानी अजर अमर होने का वरदान। एक बार लोमश ऋषि रामकथा का प्रवचन दे रहे थे, तब एक चंचल चप्पल श्रोता बार-बार अनावश्यक प्रश्न पूछकर एकाग्रता भंग करने लगा तो‌ ऋषि ने उसे अगले जन्म में कौवे बनने का शाप दिया, जो बाद में काकभुशुण्डि (काग के रूप में रामायण का एक पात्र जो बाल रामचंद्र के हाथ से निवाला झपटकर खाता है) नाम से सुप्रसिद्ध हुआ। ऋषि को लगता था कि बल 'कुटिया डुबाए जीवन लुटिया', तो बल‌ 'जब‌ दशरथ ने मर जाना, तो कोपभवन क्यों बनाना? यानी कैकेयी माता के कोपभवन का कोप, जब आसमान छूने लगा, तो दशरथ के जीने का स्कोप कहां‌ रहा था, अंततः उन्हें स्वर्ग सिधारना ही पड़ा। अंत में अमुक पहेली के अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि खांकर खेत का देवता वह खांकर है, तो बताओ कि सांकर सैंण का देवता बल वह क्या है?

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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