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मि क्य छौं लाडू? PUZZLE-30 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE


मि क्य छौं लाडू? 

PUZZLE-30

JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.

GARHWALI PUZZLE

बल खम्म खाडू

कभी  नि  चाड़ू

अर जम्म  वाडू

कभी  नि  बाडू

काचो    कौरव 

साचो    पांडव

त  पंडो   बाजू

नाची  ‌‌     पांडू 

भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) कौरव-पांडव भाईयों के आपसी मतभेद/गृह क्लेश के चलते खड्डे में खडाई (आधी-अधूरी दफनाई) हुई अपनी जिंदगी की भूमिका स्वरूप पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल खम्म खाडू, यानी खम्बे को घेंटा, वह कभी नहीं चाड़ू (ऊपर उठा), और जम्म वाडू यानी अंगद की तरह पैर धरती में जमा पैर, कभी नहीं बाडू (आगे बढ़ा), यानी अपनी सीमा नहीं लांगी। अमुक अपनी बात को कौरव और पांडव भाईयों के आपसी व्यवहार के बारे में अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल कच्चा कौरव, सच्चा पांडव, तो पंडो बाजू (पांडव नृत्य शैली का बाजा बजा), नाचे ‌‌पांडू (पांडव)। 


अर  ढम्म  ढ़ांडू

पोड़ी        डांडू

बल खम्म खाडू

कभी  नि  चाड़ू

उबरा   ‌  कौरव

ढ्यपुरा   पांडव

भोले  ‌      तांडू

नाची        पांडूं

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए अपनी बात को पहेली के भ्रामक दूसरे चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल पांडव नृत्य का बाजा बज रहा है और ढम्म ढ़ांडू (तेजी से ओले), पड़े डांडू (जंगल), तो बल खम्म खाडू, कभी नहीं चाड़ू (प्रथम दो लाईनों की पुनर्वावृति), उबरा (मकान के मुख्य ग्राउंड फ्लोर पर) कौरव, ढ्यपुरा (ढ़ाई मंजिल पर बनी पांच फुट ऊंची परछती, जहां पर आलू प्याज जैसी चीजों का‌ रखरखाव होता है, वहां पर) पांडव, तो बड़े भाई कौरव का छोटे भाई पांडव के प्रति सौतेला अन्यायपूर्ण व्यवहार देखकर, भोले बाबा तांडू (तांडव), नाचे पांडूं (दूसरी मंजिल पर)। 


अर  डम्म   डाडू

मारी  ‌‌       भांडू

बल खम्म  खाडू

कभी  नि    बाडू

दुइ    भै    सोरा

व्वोरा   ‌ ‌‌‌   ध्वोरा

अपणो     ढ़ाड्डू

अपणो       साडू

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के तीसरे ज्ञानमयी चरण में संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है बल न्याय के देवता भोले बाबा गुस्से में तांडव नाच रहे हैं और अमुक पर डम्म डाडू (बड़े करछे का तेज प्रहार), मारा भांडू (बर्तन भांडे), तो बल खम्म  खाडू, कभी नहीं बाडू (पहली दो लाईनों की पुनर्वावृति), दोनों भाई सोरा (रिस्तेदार), यानी दोनों सगे भाई अलग होकर रिस्तेदार होकर, व्वोरा-ध्वोरा (आस-पास के खेत मकानों में बस गए), तो दोनों रिस्तेदार भाईयों का बल अपना ढ़ाड्डू (बिल्ला), अपना साडू (बहनोई), यानी अलग होने पर दोनों भाईयों की अपनी ढ़फली अपना राग। 


अर  झम्म   झाड़ू

झौड़िनि     आड़ू

बल  खम्म  खाडू

कभी   नि    बाडू

पुंगड़ौ         कांडू

सग्वड़ौ         राडू

नर्सिंगौ        खाडू

मि  क्य  छौं  लाडू?

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं का जिक्र करते हुए आगे कहता है कि दोनों भाई अपने-अपने काम में व्यस्त हैं, और झम्म झाड़ू (तेज झाड़ू की मार से), झड़े आड़ू, तो‌ बल‌ खम्म खाडू, कभी नि बाडू (पहली दो लाईनों की पुनर्वावृति)। अंत में अमुक पहेली के अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि बल वह पुंगड़ौ (खेत का) कांडू (कांटा, यानी बराबर तोलने के तराजू के कांटे जैसा) है, सग्वड़ौ (क्यारियों का) राडू (मजबूत लौह स्तंभ है), वह‌ नरसिंह (नारायण भगवान और शेर मिक्स्ड) भगवान का खाडू (भेड़ा) है, यानी वह नरसिंह भगवान के निमित्त बार्डर पर 'नो मैनस लैंड' है, यानी सीमा का उलंघन‌ करने वाले का हाल हिरण्यकश्यप राक्षस की तरह होना निश्चित है, तो बताओ कि बल वह क्या है लाडू (लाडले)?

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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