सांसी खेल बल मि क्य छौं?पजल-14 जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'. GARHWALI PUZZLE
बल खेलों मा लांग
अर पीणा मा भांग
त जु टांकों मा रांग
त अंतौ दगड्या सांग
बल बादी कि बदेण
नि दिखौ कर्तब कजेण
त पाड़ै ब्यटुलि ब्वारि
बैठी जंदन खुदेण
भावार्थ
अलाणा-फलाणा (अमुक) देवभूमि उत्तराखण्ड के एक पौराणिक साहसिक जोखिम भरे नट प्रजाति के खेल की भूमिका स्वरूप अपनी बात को पहेली के प्रथम चरण में आगे बढ़ाते हुए एक सुप्रसिद्ध कहावत के अनुसार कहता है कि बल खेलों में लांग (बहुत लंबे बांस के एक सूले यानी डंडे के ऊपर पेट के बल चक्करी मारकर किए जाने वाला जोखिम भरा करतब), और पीने में भांग, त जो टांकों में रांग (बर्तनों के छेद की मरम्मत करने हेतु रांग नामक धातु का प्रयोग किया जाता है), तो अंत का दगड्या (साथी) सांग (अर्थी, यानी अमुक के खेल में करतब करते हुए अगर करतब करने वाला बादी गिरकर बच भी जाता है, तो उसे खेती किसानी के लिए अशुभ मानकर मौत के घाट उतार दिया जाता था), तो बल नट प्रजाति के बादी की बदेण (नृतकी), नहीं दिखाए करतब कजेण (धर्म पत्नी), तो पहाड़ की बेटी-ब्वारि (बहू), बैठ जाते हैं खुदेण (मायके की याद में डूब जाते हैं)।
बल ह्ये रज्जा भुम्याल
मथि सिरमोरी ताल
द्विपाड़ुं बिच ज्युड़ु डाल
कर बदेण हिटि कमाल
रज्जा क्य इनाम द्याल
जु बदियों सुधरु भ्वाल
बल जु भि कै द्यो पाट
वै कु ह्वलु राजपाट
भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के भ्रामक दूसरे चरण में अपनी बात को उत्तराखण्ड के जौनसार बाबर के पौराणिक सिरमोर की राजधानी के सिरमोरी ताल (पोका और कोका नामक दो पहाड़ियों के बीच में स्थित ताल) की पौराणिक घटना के परिवेश में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल बादी राजा से कहता है कि बल हे राजा भुम्याल (भूमि के देवता), मथि (ऊपर) सिरमोरी ताल, दो तथाकथित पहाड़ियों के बीच ज्युड़ु (रस्सी) डाल, करे उसकी बदेण (नृतकी धर्मपत्नी) हिटि (चलकर) कमाल, तो बल राजा क्या इनाम द्याल (देगा)?, जो बादियों (नटों) का सुधरे भ्वाल (भविष्य), तो बल राजा ने सोचा कि ऐसा मौत का जोखिम भरा असंभव कार्य किसी के बस की नहीं है, तो मजाक-मजाक में कह दिया कि बल जो भी कर दे यह आसमानी दूरी पाट (मिटा दे), उसका होगा राजपाट।
कखि छिन्जौ राजपाट
त बल सोलदुणि आठ
ह्वै ज्यौ रज्जा जपाट
तौंन ज्युड़ि दीनि काट
जु आर पार टोका
बीच गाड मा डूबु
लोका दीनि धोका
त रज्जै नगरि भि डूबु
भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल तथाकथित बदेण नृतकी का सिरमोरी ताल के ऊपर दो तथाकथित पहाड़ियों के बीच बंधी रस्सी के ऊपर जोखिम भरा करतब शुरू होता है, बदेण जैसे ही एक बार दो पहाड़ियों की आसमानी दूरी पार करके वापस आने के लिए सफलतापूर्वक रस्सी पार करने ही वाली थी, तो किसी राजा के हितैषी ने सोचा कि शर्त अनुसार जीत कर कहीं छिन जाए राजा का राजपाट, औ बल सोलह दूने आठ, हो जाए राजा जपाट (बगैर राजपाट के मुरदे स्वरूप), तो बल उन्होंने रस्सी दी काट, परिणामस्वरूप बदेण नीचे ताल में डूबते हुए अभिशाप स्वरूप बोल बोलने लगी कि बल जो आर पोका पार टोका, बीच गाड (नदी) में वह डूबी, तो बल लोका (राज्य के लोगों) ने दिया धोका, तो राजा की नगरी भी डूबी, कहते हैं कि उसी रात पूरी नगरी जब चैन की नींद में सो रही थी, तो देवीय प्रकोप के कारण ऊपर बना कृतिम बांध टूट जाता है और पूरी नगरी जलमग्न हो जाती है, तब से देवताओं के आह्वाहन हेतु उत्तराखण्ड में बादियों द्वारा तथाकथित जोखिम भरा खेल खेला जाता आया है, जो नट प्रजातियों के विकास हेतु पलायन के चलते अब यह लगभग विलुप्त हो चुका है।
नगरी शून्य अबोल
ह्वैंगि सच दैवि बोल
तब बटिन द्यप्तौं लाग
शुरु ह्विं बादियौं लांग
त ढ़ोल दमौ बाजै
शुरु ह्वैनि खंड बाजे
बांस ज्यूडि सांग छौं
सांसी खेल बलक्यछौं?
भावार्थ
अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहता है कि बल देवीय प्रकोप से नगरी शून्य अबोल, हो गए सच देवी बोल, तब से देवताओं की लाग (आह्वाहन स्वरूप पूजा), शुरु हुई उत्तराखण्ड में बादियों की लांग, तो बल ढ़ोल दमौ (नगाड़े) बाजे, शुरु हुए 'खंड बाजे' (बादी द्वारा देवपूजा एवं ईनाम स्वरूप क्रमानुसार देवताओं राजाओं प्रधानों, और सेठ धनाढ्यों के नाम के चक्कर लगाने से पहले बोलना कि बल अलाणे देवता के नाम के खंड बाजे, फलाणे राजा के नाम के खंड बाजे)। अंत में अमुक पहेली के अनुसार कहता और पूछता है कि बल बांस ज्यूडि (रस्सी) की सांग (अरथी) है, यानी उत्तराखण्ड में बांस तभी काटा जाता है, जब किसी मृतात्मा की अरथी बनानी होती है, वरना अशुभ माना जाता है, मगर तथाकथित देवीय आह्वाहन हेतु बांस काटना शुभ माना जाता है, क्योंकि बादी के बोल शिवजी के बोल माने जाते हैं, तो बताओ कि सांसी (लंबे बांस का तथाकथित साहसिक) खेल बल वह क्या है?
जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'
प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार
मोबाइल नंबर-9810762253
नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है
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