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खिर्सू मेलौ बल मि क्य छौं? पजल-15 जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'. GARHWALI PUZZLE

 

खिर्सू मेलौ बल मि क्य छौं? 

पजल-15 जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'. GARHWALI PUZZLE

जु ग्वाड़  खिर्सू  गढ़वाल

बिवइ अलमोड़ै  जुन्याल

कुमौसि सजिलु ससुराल

न हि रंगिलु मेलु भुम्याल

त  ब्वारि   जावु   मैतुड़ा

पंच   फूल   लावु    तैड़ा

खिर्सू म  बिसै  लगि  थौ

जखथौ तख भुम्याल थौ

भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) पौड़ी जिले खिर्सू ब्लॉक के दो सुप्रसिद्ध पड़ोसी गाँवों ग्वाड़-कोठगी के वार्षिक वसंतोत्सव की भूमिका स्वरूप अपनी बात को पहेली के प्रथम चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जो ग्वाड़ गाँव खिर्सू ब्लॉक पौड़ी गढ़वाल, बिवाई कुमाऊं अलमोड़ा जिले की जुन्याल (चंदा राजकुमारी), तो बल नई नवेली दुल्हन को कुमाऊं सा सजीला ससुराल, नहीं मिला रंगिला मेला भुम्याल (कुमाऊं का भुम्याल/घंडियाल/घंटाकर्ण देवता), तो बल ब्वारि (तथाकथित ग्वाड़ की बहू) जाए मैतुड़ा (मायके), तो पौराणिक गाथाओं के अनुसार तथाकथित बहू अपने मायके से अपने साथ भुम्याल (घंडियाल) देवता को अपने साथ ससुराल ले जाने की पेशकश करती है, तो पिता साफ मना कर देते हैं, मगर पिता ऐवज में देवता की भेंट चढ़े हुए पांच फूलों को बेटी को समौण (यादगार) के तौर पर भेंट करते हैं, तो बल चंदा बेटी तथाकथित पांच फूल लाए तैड़ा (पालकी), तो कहते हैं कि रास्ते में अचानक से पालकी का वजन बहुत भारी हो गया, यानी अपने अनन्य भक्त के भक्तिभाव से अभीभूत होकर स्वयं घंडियाल देवता पालकी में‌ विराजमान हो गए, पालकी को बगैर विश्राम के सीधे बेटी के ससुराल ग्वाड़ गाँव ले जाने के आदेश दिए गए थे, मगर जरूरत से ज्यादा भारी वजन के चलते कहारों को थकान लगी, परिणामस्वरूप उन्होंने खिर्सू में ही पालकी को जमीन में रख दी। जमीन में रखते ही घंडियाल देवता वहीं झाड़ी में छिप गए, फिर रात में घंडियाल देवता चंदा बहू के सपने में आए और उन्हें धार्मिक विधि विधान से उसी जगह पर स्थापित करने को कहा, तो बल जहां थौ (देवता का विश्राम), वहीं भुम्याल देवता थौ (स्थापित है)। 


पाड़ौ  मा  जनी   बसंत

आंदो    बल    मौल्यार

तनी    देवभूम्या    संत 

उर्यैंदन    मेला     त्यार

जनि  कुमाऊं  गढ़वाल 

पुज्येंदन द्यप्ता घंड्याल

तनि बल कठबद्दी मेला

उर्यैंदन  खिर्सू म  लाल

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए अपनी बात को पहेली के दूसरे भ्रामक चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल पहाड़ों में जैसे ही वसंत, आता बल मौल्यार (पेड़-पौधों में नई कोंपले फूटने का वसंत मौसम), वैसे ही देव भूमी के संत, उर्यैंदन यानी उत्साह से मनाते हैं मेले    त्यौहार, तो बल जैसे ही कुमाऊं गढ़वाल, पूजे जाते हैं देवता घंडियाल, वैसे ही बल कठबद्दी मेला (पहले तथाकथित खिर्सू के मेले में नट प्रजाति का बादी 300 मीटर की ऊंची खतरनाक ढ़लान से रस्सी के सहारे फिसलने का जोखिम भरा मौत का खेल खेलता था, जिसे अंग्रेजी सरकार ने बंद करवाया, तो लोगों ने काठ के बादी का प्रतीकात्मक स्वरूप फिसलने वाला तथाकथित खेल, खेती-किसानी की शुभता हेतु हर बैसाख, यानी अप्रैल माह के तीसरे सोमवार को मनाते हुए जारी रखा, यानी तथाकथित मेला), उर्यैंदन (मनाते हैं) खिर्सू में लाल (माटी के लाल)। 


घंड्यालै  पूजा  मंडाण

बुरांसै डालि कु कटाण

शुरु ह्वै  बाबलो  ज्युड़ो

बद्दि कु मुखोटा बनाण

कोठगि  ग्वाड़ा  सामंत

निगाडा ख्वल्यौंका दंत

त खिर्सू का बणिये की

नि ह्वाओ बल टोटकंत

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के तीसरे ज्ञानमयी चरण में अपनी बात को तथाकथित मेले की तैयारी के बारे में बताते हुए हुए कहता है कि बल घंडियाल की पूजा मंडाण (देवताओं के नृत्य जागरण), बुरांस की डाली का कटाण (काटना), शुरु हुआ गंगा किनारे स्थित सिरौ बगड़ नामक स्थान से लाए गए बाबलो घास का ज्युड़ा (300 मीटर तिलड़ा, यानी तीन लड़ियों वाला मोटा मजबूत रस्सा), बादी का काठ का मुखोटा बनाना। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल कोठगी ग्वाड गाँव के सामंत, नहीं गाडे (निकाले) ख्वल्यौं (बगैर दांत या कम दांत वाले पोपले मुंह वाले के बचे खुचे दंत (दांत), तो बल खिर्सू के बनिये की, नहीं होए बल टोटकंत (उल्टी मति/शैतानी दिमाग़) 


मेला म  ग्वाड  कोठगि

कैरजदन चखन्यो ठगि

ग्वाड़ि बणिया भाजिगै

अर कठगी बि कोचिगै

जख वर्तखूंट फर तैड़ा

वख  हि  मेला  मैतुड़ा

पलूणौ   प्रसादी    छौं

खिर्सू मेलौ बल क्यछौं?

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहता है कि बल मेले में ग्वाड कोठगी, कर जाते हैं चखन्यो  (मजाक) ठगी, तो बल तथाकथित शैतान लोगों को ग्वाड़ि (घरों में बंद करके) बनिया भाग गया, और कुंडों में ताले की जगह कठगी (लकड़ी) भी कोचिगै (फंसा गया)। अंत में अमुक पहेली अनुसार अपनी बात को कहता और पूछता है कि बल जहां वर्तखूंट (तथाकथित बाबले घास का 300 मीटर मोटा रस्सा जो 300 मीटर की ऊंचाई पर बांज वृक्ष के मजबूत खूंटे से बंधा होता है) पर तैड़ा (मचान/पालकी, जिसके सहारे कठबद्दी तेजी से नीचे की ओर फिसलता है), तो बल वहीं मेला मैतुड़ा ( मायके के मेले में गाँव की विवाहित बेटियां अपने अपने ससुराल से आती हैं, यानी मिलन की हंसी-खुशी और विरह में रोने-धोने का और एक दूसरे को समौण यानी यादगार भेंट देने का वार्षिक वसंतोत्सव), तो बल वह पलूण (तीसरे दिन के मेले में काठ के प्रतीकात्मक मुखोटे) का प्रसादी (प्रसाद देने वाला कृपालु) है, तो बताओ कि खिर्सू मेले‌ का बल वह क्या है? 


जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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