Advertisement

तमतमौ तमख्या बल मि क्य छौं? पजल-16 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE


तमतमौ तमख्या बल मि क्य छौं? पजल-16

 Jagmohan Singh Rawat 'Jagmora''.

 GARHWALI PUZZLE

आदिम कि पछ्यांण दुक्के  से

जालिम कि पछ्यांण मुक्के से

खादिम कि पछ्यांण रज्जा से

हाकिम कि पछ्यांण हुक्के से

बल  जदगा  बड़ो   औफिसर

उदगा  हि  बड़ो   बल  ‌ बैठक

जदगा छुट्टु  सरकरि  नौकर

उदगा खुट्टु म  उठक  बैठक

भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) अपनी धुंवाधार सामाजिक पधनचरी (प्रधान सेवक वाली) जिंदगी की भूमिका स्वरूप पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल आदिम (आदमी) की पहचान दुक्के (जोड़ीदार धर्मपत्नी) से, यानी कुंवारे/विधुर अधेड़ आदमी की समाज में इज्जत नहीं होती, तो जालिम की पहचान मुक्के से, यानी जालिम कत्ल करने के पश्चात मुक्के से ठोक बजाकर मृत्यु निश्चित करता है, तो खादिम (सेवक) की पहचान रज्जा (राजा) से, यानी जितना बड़ा राजा, उतना ही बड़ा 'प्रधान सेवक', तो हाकिम की पहचान हुक्के से, क्योंकि बल जितना बड़ा औफिसर, उतनी ही बड़ी बल बैठक (महफ़िल), और जितना छोटा सरकारी नौकर, उतनी ही चरणों में उठक-बैठक, यानी प्रधान सेवक को जनता जनार्दन के सम्मुख उठक-बैठक करते रहना पड़ता है, वरना कब कुर्सी की उठक पठक हो जाए?, और कब हुक्का पानी भी बंद हो जाए। 


हुकम  म   बादशाही  नि  ह्वा

हुक्कम नवाब  शाही  नि  ह्वा

भोजपत्र कि  गढ़  कुमाउं  से

अवध   आवाजाही   नि   ह्वा

बल भोजपत्र  कि  लपेटन म

पथलि कमरसि यनु नजाकत

हुंद  गंगाल  क  सीलापन  म

जनु चम्पा फूल सि चम्पावत

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के भ्रामक दूसरे चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल हुकम  (आदेशानुसार) में बादशाही नहीं हो, तो हुक्के में नवाब शाही नहीं  हो, यानी लखनवी अंदाज में 'पहले आप पहले आप' की सांस्कृतिक अवधी बादशाहत नहीं हो, तो बल भोजपत्र की गढ़वाल कुमाऊं से अवध आवाजाही नहीं हो। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल भोजपत्र की लपेटन (ओढ़नी) में, पतली कमर जैसी ऐसी नजाकत, होती है गंगाल (गंगा या गंगा की सहायक नदियों के अमृतमयी पावन जल) के सीलापन (सीलन/गीलेपन) में, जैसी चम्पा फूल सी  चम्पावत (उत्तराखंड कुमाऊं मंडल का तराई क्षेत्र का एक जिला), यानी अमुक जहां देवभूमि के भोजपत्र की मजबूत सामाजिक सांस्कृतिक ओढ़नी के लखनवी अंदाज से परिभाषित है, वहीं चम्पावत के चम्पा फूलों के इत्र से भी सुवासित रहता है। 


बल हुक्का  पाणि  मा  गंगाल

कर्दु  दवै  को   काम‌   कमाल

न्है ध्वै रंग्ण म  दंत्मंजै ‌गुल‌ ‌‌ म

नि ह्वा अरबी किड़्या  कंगाल

हात कंगन खुण  आरसी  क्य

पढ्यां लिख्यां तैं फारसी  क्य

हिमालै  बिटि  पौंछि   बंगाल

ह्वैगि  मैलि   कुचैलि   गंगाल

त बल यनु प्यैक हुक्कापाणि 

कै मनखि फर  आवो  बाणि

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल हुक्का पानी में गंगाल (गंगा यमुना सरस्वती की सभ्यता का पावन औषधीय अमृतमयी जल), करता है दवाई का काम‌ कमाल, तो बल नहा धोकर रंग्ण (राख) में दंतमंजन ‌गुल‌ ‌‌(जले हुए तंबाकू के अवशेष) में, नहीं हो अरबी (अरब का अरबी सेठ) किड़्या (कीड़ों से रोगग्रस्त) कंगाल, क्योंकि बल, हाथ कंगन को आरसी (दर्पण) क्या?, पढ़े-लिखे को फारसी क्या?, क्योंकि बल हिमालय से पहुंचकर बंगाल, हो गई मैली कुचैली गंगाल, तो बल ऐसे पीकर हुक्का पानी, किस मनुष्य पर आए बाणि (तरो ताजगी)?, यानी अमुक का सेवन कैंसर जैसे रोगों की सामाजिक दावत देने में सक्षम है। 


एक गाळा नि  जाणो  पाणि

पाड़ म बंद ह्वा हुक्का पाणि

बल ताळ  पाणि  की  गगरी

अर   ऐंच   भभरावो   आग

बीच  कूल  गगड़ाणि   भरी

त बल निकलो कालो  नाग

सीरा खै हक्का बक्का  छौं

तमतमौ तमख्या बलक्यछौं?

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहता है कि बल एक गले नहीं जा रहा है पानी, यानी संबंध में खारापन आ जाए तो, देवभूमि पहाड़ों मे बंद होए हुक्का पानी। अंत में अमुक पहेली अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता कि बल ताळ (नीचे) पानी की गगरी, और ऐंच (ऊपर) भभरावो (सुलगती रहे) आग, बीच कूल (नहर) गगड़ाणि (गुड़गुड़ कर रही है) भरी (ज्यादा जोर से), यानी कोहराम मचा रही है, तो बल निकला काला नाग, तो बल सीरा (गुड़ तंबाकू मिक्स) खाकर वह हक्का बक्का है, तो बताओ कि तमतमौ (तमतमाए/आगबबूला चेहरे‌ वाला) तमख्या (तंबाकू का शौकीन) बल वह क्य है?


जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

Post a Comment

0 Comments