भाटवाड़ौ बल मि क्य छौं?
पजल-17
JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.
GARHWALI PUZZLE
बल जनि गौड़ौं कु मरोड़ा
त तनि भैंसौं कु भैंसोड़ा
जोगियों कु जोगीवाड़ा
कोलियों कु कोलीवाड़ा
तबल तनि तिलकु तिलवाड़ा
त तनि भाट कु भाटवाड़ा
त बल म्यरु नौ फोकणदास
बुबा को नौ बोकणदास
भावार्थ
अलाणा-फलाणा (अमुक) भट्ट ब्राह्मणों जैसी (कहावत अनुसार- आगे ब्राह्मण पीछे भाट, ताके पीछे औरे जात) सुर सम्राट स्मार्ट हाजिर जवाबी जिंदगी की भूमिका स्वरूप अपना सांकेतिक तौर पर परिचय देते हुए अपनी बात को पहेली के प्रथम चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जैसे ही गौडौं (गायों) का मरोड़ा (गाँव), तो वैसे ही भैंसों का भैंसोड़ा (गाँव), जोगियों का जोगीवाड़ा, कोलियों का कोलीवाड़ा, तो बल वैसे ही तिल का तिलवाड़ा, तो वैसे ही भाट का भाटवाड़ा (चमोली जिले में स्थित एक गाँव), तो बल उसका (अमुक) का नाम फोकणदास (बातों को हवा में फूकने/फेंकने वाला सेवक), बुबा (पिता) का नाम बोकणदास (ज्यादा से ज्यादा ईनाम भेंट को ढ़ोने वाला सेवक), यानी अमुक दिन में सूरज के सान्निध्य में तारे गिनवाकर, और रात में चंदा के सान्निध्य में समुद्री ज्वार-भाटा की लहरों को ही गिनवाकर खाने-कमाने में तीन कला (सुर गीत संगीत) सिद्धहस्त है।
बल नायक ज्यै का पायक
छिं बामण ज्यै का बल पीर
कंडारगढ्यू रज्जा लायक
निकलि फोकणदास बजीर
बल थोकदार दयालु रौ
ता वै को घार बल बुंगा
अर जु थोकदार दीन रौ
ता वै का घार बल ढु़ंगा
भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के दूसरे भ्रामक चरण में अपनी बात को लोक कहावत अनुसार कंडारा गढ़ (कंडारा गाँव अगस्त्यमुनि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित पौराणिक गढ़ राज्य) के राजा के अधीनस्थ अपनी वजीरी के बारे में बताते हुए आगे कहता है कि बल नायक जिसका पायक (पैदल सिपाही), हैं ब्राह्मण जिसके बल पीर, तो कंडारगढ़ का राजा लायक, निकला फोकणदास बजीर। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल उसका थोकदार (ठाकुर) दयालु रहे, तो उसके ( ठाकुर) का घर बल बुंगा (यानी उत्तराखंड में जहां भी बूंग, बूंगा स्थान मिलें, तो समझिए कि कुछ सौ साल पहले वहां कोई बड़ा ठाकुर रहता था), और जो थोकदार दीन (गरीब) रहे, तो उसके (गरीब ठाकुर) के घर बल ढु़ंगा (कंकड पत्थर)।
देवि कु खेत देवीखेत
सेम देब्ता कु सीमखेत
राणि कु खेत रानीखेत
दुलां भितर बैठ्युं बिलखेत
मंगत्या सणि टाल निसकदां
बल लूंण त दीण हि प्वड़लो
भाट सणि झुटाल निसकदां
बल दूंण त दीण हि प्वड़लो
भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में अपनी बात को संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप बिलखेत गाँव (कल्जीखाल ब्लॉक पौड़ी जिले में स्थित एक सुप्रसिद्ध गाँव जहां बैलों द्वारा खेतों में गेहूं की मंडाई के वक्त अन्न की भरपूर दान दक्षिणा हेतु अमुक की हाजिर जवाबी कैसे काम आती है?) के परिवेश में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल देवी का खेत देवीखेत, सेम देवता का सीमखेत, रानी का खेत रानीखेत, तो बल दुलां भितर (बिल के अंदर) बैठा हुआ बिलखेत, यानी जब बिलखेत गाँव के निवासियों ने खेत में अमुक को इस सोच के साथ नजरअंदाज किया कि गाँव में पाथा (दो किलो) भर अन्नदान से काम चल जाता है, लेकिन खेतों में अमुक को दूंण (32 किलो अन्न का बोरा) देना ही पड़ेगा, तो अमुक बिलखेत गाँव को ब्यंगात्मक स्वरूप खाई में धसे/घुसे हुए गाँव के नाम से परिभाषित कर रहा है, तो बल गाँव वाले कह रहे हैं कि बल मंगते को टाल नहीं सकते, बल लूंण (नमक) तो देना ही पड़ेगा, और भाट की बातों को झुटाल (झूठा साबित कर) नहीं सकते, तो बल दूंण (32 किलो अन्न का कट्टा) तो देना ही पड़ेगा। यानी 'मान न मान मंगता तेरा मेहमान, और जान न जान दाता शालिग्राम भगवान' (यानी विष्णु भगवान जो वृंदा के अभिशाप से अभिशप्त होकर देवशयनी यानी जून माह से लेकर अक्टूबर माह की देव उठावनी तक की चार महीने की अवधि जमीन के अंदर शयनकक्ष में बिताते हैं)।
बगैर बैकि फसल लै ग्यां
समैत सूद असल ले ग्यां
तुम खेतम बल्दसि लग्यांरौं
तुम्र मैत म जंवै सि खै ग्यां
बल जंवै गीजु ससुरड़ि मा
त बल भाट गीजु पुंगड़ि मा
भट्ट बामणौं जनु स्मार्ट छौं
भाटवाड़ौ बल मि क्य छौं?
भावार्थ
अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहता है कि तथाकथित बिलखेत गाँव वालों को अमुक को भेंट स्वरूप कई दूण अन्न के कट्टे देकर कुलियों के द्वारा अमुक के गाँव भिजवाने की मजबूरी निभानी पड़ी, तो बल बगैर बैकि (बीज बोकर) फसल लै (काट) गया, समेत सूद असल ले गया, तो बल अमुक यहां पर भी गाँव वालों पर ब्यंगबाण फेंकने से नहीं चूकता, कि बल बिलखेत वाले खेत में बल्द (बैल) की तरह लगे रहे, यानी बिलखेत वाले निरे बैल समान ही हैं और वह अमुक उनके मैत (मायके) में जंवै (जंवाई/दामाद) की तरह मजे से दावत खा गया, तो कहावत अनुसार कि बल जंवै (दामाद) गीजा (अभ्यस्त होता है) ससुरड़ि (ससुराल) में, यानी ससुराल में बेशक पहले-पहले के कुछ दिन दामाद की पांचों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाई में रहता है, तो बल भाट गीजे (अभयस्त होता है) पुंगड़ि (खेतों) में, यानी स्रोत में पानी पूर्णतया शुद्ध और अधिकता में मिलता है। अंत में अमुक पहेली अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि वह भट्ट ब्राह्मणों जैसा हाजिर जवाबी में स्मार्ट है, तो बताओ कि तथाकथित भाटवाड़ों का बल वह क्या है?
जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'
प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार
मोबाइल नंबर-9810762253
नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है
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