हमरा बल क्य बुसैनि?
पजल-11 जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'.
GARHWALI PUZZLE
जु सुजलाम् सुफलाम्
धन्य शस्य श्यामलाम्
त या भूमि बंगाल म
च द्यो भूमि गंगाल म
बल चाची मामी भल
पर मात से क्वी नि भल
च्युड़ा तल्यां
चौंल भल
पर भात से क्वी नि भल
भावार्थ
अलाणा-फलाणा (अमुक) देवभूमि के गंगाल (गंगा और गंगा
की सहायक नदियों) के हरित क्षेत्र से लेकर बंगाल के फलित क्षेत्र की भूमिका स्वरूप
पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल भारत देश के राष्ट्रीय
गान वंदे मातरम् (बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित राष्ट्रीय गीत) के अनुसार जो
सुजलाम् (पानी से सराबोर) सुफलाम् (फलों से फलित), है धन्य शस्य श्यामलाम् (फसल श्यामा
हरी की रंगत में हरी-भरी), तो यह भूमि बंगाल में, है देवभूमि गंगाल में। अमुक अपनी
बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल चाची मामी भली, पर मात (माता) से कोई नहीं
भली?, च्युड़ा (चावल के भुने हुए चिवड़े) तले हुए चावल भला, पर भात से कुछ नहीं भला?
बसगाळ भल धान भंडि
नथिर त चरी घास भंडि
दक्षिणी
पोल चंद्रयान
धान धन धान्य
भग्यान
बल भादों मोरि सासु
अर असूज
ऐनि आंसु
बयाल धान कि छावनी
त नि आवनी बावनी
भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए अपनी बात
को पहेली के भ्रामक दूसरे चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल बसगाळ (बरसात) भला,
तो धान भंडि (अधिक), नहीं तो चरीघास भंडि (अधिक), और अगर दक्षिणी पोल चंद्रयान (यानी
चांद का दक्षिणी भाग ऊपर उभरा हुआ दिखाई दे), तो धान की फसल से किसान धन धान्य भग्यान
(भाग्यवान), तो बल भादों (बरसात के महीने में जब सास के सान्निध्य में फसल बोई गई,
तो बुआई के बाद) मरी सासु, और असूज (अश्विन माह में फसल की कटाई से लेकर मंडाई पिसाई
कुटाई के कष्टदायक काम अकेले करने के कारण बहूरानी) के आए आंसु, मगर धान की बालियों
की वजह से बल बयाल (भूत प्रेतों की टोली का भ्रमण दिन दोपहरी 12 बजे के बाद और रात्रि
12 बजे के बाद) धान की छावनी, तो नहीं आवनी बावनी (यानी धान की बालियों से अलाएं बलाएं
सभी दूर रहती हैं)।
जुन्याळी
रात मा बल
जु क्वी नी
बूझू पजल
तबल सूरिज बी फजल
गावो नी गीत गजल
भुला द्वि दूण
धान मा
बल कतगा
चौंल हूंण
भैजि म्यर अनुमान मा
ह्वाल बल एक ही
दूण
भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट
स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल
उत्तराखण्ड देवभूमि की जुन्याळी (चांदनी) रात में बल, जो कोई नहीं बूझे पजल, तो बल
सूरज भी फजल (सुबह), गाए नहीं गीत गजल। अमुक पुनः अपनी बात को पजल (पहेली) के माध्यम
से अपने परिवार के सदस्यों से पूछता है कि बल भुला (छोटे भाई) दो दूण (16 पाथा यानी
32 किलो का एक दूण, तो दो दूण यानी 64 किलो) धान में, बल कितने चावल होंगे?, तो छोटा
भाई उत्तर देते हुए कहता है कि बल भैजि (बड़े भाई) उसके अनुमान में, चावल होंगे बल
एक ही दूण (32 किलो यानी भूसा निकलने के बाद पचास प्रतिशत शेष)।
भुलि द्वि पाथा धान मा
बल कतगा
चौंल हूंण
भैजी म्यर
अंदाज मा
बल एकहि पाथन हूंण
सौ दाणा
साट्टि ह्वैनि
द्वि दाणा चौंल निह्वैनि
हौरौं क
साट्टि बुसैनि
हमरा बल क्य
बुसैनि?
भावार्थ
अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी
संरचनात्मक विशेषताओं का हवाला देते हुए पजल के माध्यम से आगे पूछता है कि बल भुलि
(छोटी बहन) दो पाथा (2 किलो का एक पाथा, तो 2 पाथे के 4 किलो) धान में, बल कितने चावल होंगे?, बल भैजी (बड़े भैया) उसके अंदाज में, बल
एक ही पाथन (2 किलो यानी भूसा रहित पचास प्रतिशत शेष) होंगे। अंत में अमुक पहेली के
अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि बल सौ दाने साट्टि (साठ दिन में पकने
वाली धान की किस्म) हुई, पर दो दाने चावल नहीं हुए, तो बल हौरौं (दूसरों) के साट्टि
(धान) बुसैनि (थोथे/बीज रहित हुए), तो बताओ कि हमरा (अमुक के) बल क्या बुसैनि (थोथे/दाने
रहित हुए)?
जगमोहन
सिंह रावत 'जगमोरा'
प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकारs
मोबाइल नंबर-9810762253
नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी
ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा
हुआ होता है
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