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गौआदिम बल मि क्य छौं? पजल-1---जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'. Garhwali Puzzle


गौआदिम बल मि क्य छौं? 
पजल-1

बल  जु  भि  पाठ  रटारट

याद  करु  बल   फटाफट

वु  त   बल   तोता   ह्वाया

नथिर   वु    पोता    ह्वाया

त जु  भि  जपाट  रिटारिट

स्वांग करु  मरि  उछलपट

वु  त  बल   बांदर    ह्वाया

नथिर   वु   छातर    ह्वाया


भावार्थ

फलाणा (अमुक) पिंजरे की कैद में जन्मी कृष्ण कन्हैया स्वरूप गौआदिम (गाय जैसे भोले आदमी) सी अपनी जिंदगी की भूमिका स्वरूप पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जो भी पाठ रटारट, याद करे बल फटाफट, वह तो बल तोता हुआ, नथिर (नहीं तो) वह पोता हुआ, यानी‌ इंसान के लिए तोता और पोता दोनों एक समान होते हैं, जिन्हें घाट-घाट का पानी पीने वाला दादा जिंदगी के पाठ को घोट-घोट कर रटाता हुए अपने बुढ़ापे को बचपन से सटाता (एक्सचेंज) करता है, यानी बच्चे बूढ़े एक समान, सच्चे झूठे एक जुबान। तो बल जो भी जपाट (गंवार इंसान) रिटारिट (एक ही जगह में इधर-उधर हिलढु़ल कर), स्वांग (नाटक/नकल) करे मारकर उछलपट (उछलकूद), वह तो बल बांदर (बंदर) हुआ, नहीं तो वह छातर (रट्टू विद्यार्थी) हुआ। 


बल जु मियांमिट्ठू नि  ह्वा

त तोता भि  रट्टू  नि   ह्वा

अर जु पिया जुट्ठू नि  ह्वा

त खोता‌ भि लट्टू  नि  ह्वा 

बल  ज्यै  भी  डाळा   फर 

हैरा   लंलगा    फल  ‌  ह्वा

बल  वै   ही   डाळा   फर

आपणा   भी   घोल   ह्वा


भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए अपनी बात को पहेली के दूसरे भ्रामक चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जो मियां मिट्ठू (आदमी मीठा) नहीं हुआ, तो तोता भी रट्टू नहीं हुआ, और जो पिया (प्रेमी) प्यार में जुट्ठू (जूठा) नहीं हुआ, तो खोता‌ (अक्सर पंजाबी माताएं अपने लाडले को गाली स्वरूप 'खोता' यानी मूर्ख संबोधित करकर ही पुकारती हैं, वह खोता) भी लाड प्यार में लट्टू नहीं हुआ। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जिस भी डाळा (पेड़) पर, हरे लंलगा (लाल रंग के) फल हों, बल उस ही डाळा (पेड़) पर, अमुक के भी घोल (घोसलें/कोटर) हों। 


प्रकृति  का  रंगसाळ  मा

जु घुलमिल जंदी  फौजी

त शिकरिका जिबाळ मा

तब नि फंस्दी  मनमौजी

बल कुकुर सि  वफादार

छौं  कव्वा सि होशियार  

मि   बाईगौड    पिंजर्या

छौं लवगौड  सि  लबार 


भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के तीसरे ज्ञानमयी चरण में अपनी बात को संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल प्रकृति की रंगसाळ (रंगशाला) में, जो घुलमिल जाते हैं फौजी (यानी फौजियों की हरी खाकी वर्दी प्रकृति के हरे-भरे रंग में घुलमिल कर दुश्मन की नजरों से बचाती है), तो शिकारी के जिबाळ (जाल) में, तब नही फंसते हैं मनमौजी (मस्त मलंग)। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल कुकुर (कुत्ते) सा वफादार, है कौवै सा होशियार, वह बाईगौड (भगवान की कसम) पिंजर्या (कृष्ण की तरह पिंजरे में पैदा और पूजे जाने वाला), है लवगौड (प्रेमी देवता) सा लबार (बातूनी/बातें बनाने वाला नौछमी नारायण यानी नौ कला सिद्धहस्त छलिया)। 


सुव्वा सी आंखि निफेरा

पत्नी सी आंखि निह्येरा

छुंयाळोंन ‌ सुग्गा  छोड़ि

पोपटै   लल्कंठि   ह्येरा

ललचुंचन खांदु हर्मिर्ची ‌

छौं बांदर सि  नकलची‌

पोपट कु  मि पोता  छौं

गौआदिम बलमिक्य‌छौं?


भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहता है कि बल सुव्वा (तोती प्रेमिका) सी आंखें नहीं फेरो, यानी कहावत अनुसार जब तक तोती प्रेमिका अपने प्रेमी के प्यार के पिंजरे में कैद रहती है तब तक वफादार रहती है, मगर पिंजरे से बाहर निकलते ही अपने प्रेमी/मालिक की तरफ देखती तक नहीं, और पत्नी सी आंखें नहीं हेरो (घूरो), यानी इंसान काल की नजर से बच सकता है, पर पत्नी की नजर नहीं, यानी 'डौन को पकड़ना चालीस मुल्कों की पुलिस के बस की बात नहीं, मगर हीरोइन के जाल में वह एक ही हंसीन रात में फंस ही जाता है'। तो बल छुंयाळोंन ‌(बातूनी इंसानों) ने सुग्गा (अमुक विषय वस्तु पर बात करने की शुरुआत) छोड़ि (आगे बढ़ाई)। अंत में अमुक पहेली अनुसार कहता और पूछता है कि बल पोपट (दक्षिण-पश्चिम भारत में यानी गुजराती मराठी में अमुक पोपट नाम से पोपुलर है) के गले की लल्कंठि (लाल माला) ह्येरा (देखो), तो बल लाल घुमावदार सख्त चोंच से वह खाता हर्मिर्ची ‌(यानी हरी मिर्ची आंखों के व्यायाम हेतु अत्यंत लाभदायक), है बंदर सा नकलची‌, पोपट का बल वह पोता है, तो बताओ कि गौआदिम (गाय जैसा भला, यानी मैकाउ) बल वह क्या है?


जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253

नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ पजल में ही छंदबद्ध स्वरूप अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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