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स्पाइनटव्रि बलमि क्यछौं? पजल-2---जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'. GARHWALI PUZZLE

 





ब्वार्युं  कि  नै   पीढ़ी
हुंइ  भारि  चिढ़चिढ़ी
जु  गिरटादार   ह्वैकि
उग्ड़ निसकणि चीड़ी
बिनसरि बट फ्वीफ्वीं
ब्वारि  कि  मैतै  छ्वीं
एक करि अगास भ्वीं
सासु कि छ्यूंतै  छ्वीं

भावार्थ
फलाणी (अमुक) हिमालयी क्षेत्र में नट प्रजाति की अपनी जासूस नटवरी की भूमिका स्वरूप पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती है कि बल हिमालय क्षेत्र में ब्वार्युं (बहुओं) की नई पीढ़ी, हो रहीं हैं भारी चिढ़चिढ़ी, जो बल गिरटादार (आरामपरस्ती की वजह से मोटे पेट की भारी भरकम दिमागदार घमंडी) होकर, उग्ड़ यानी चढ़ नहीं सक रही हैं चीड़ी (चीड़ के पेड़ पर), फलस्वरूप बिनसरि (ब्रह्मम्हूर्त) से फ्वीफ्वीं (गुस्सैल हथिनी की तरह सूंड (लंबी नाक) को सिकोड़कर चिंघाड़ते हुए), ब्वारि (बहुरानी) की मैतै (मायके जाने की) छ्वीं (बातें/रट), तो बल एक करके अगास भ्वीं (आकाश धरती), यानी पुरजोर तरीके से सास महारानी की छ्यूंतै (चीड़ के औषधीय फल की) बातें/रट, यानी 'बहू लगाए आगरे की और सास लगाए घाघरे की, यानी सबको अपने-अपने से ही मतलब है, वाह री मतलबी दुनिया! लव कम लबार (यानी बातूनी) ज्यादा हो गए हैं, वैसे भी मुंह के बाप का क्या जाता है?, बदनाम तो जीभ को होना पड़ता है, और कटना तो नाक और मूंछों को पड़ता है। 

बिन नटुं निर्बगि ह्यूंद
कनक्वै   राण   ज्यूंद
त कुळैं  गर्मैसि  शीत
च  कुलै फर्मैसि  गीत
बल जा  चिलंगो  जा
मदमस्त मलिंगो  जा
अपणा चिल्ल गौं जा
टिपिल्यां  चिलगोजा

भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के दूसरे भ्रामक चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती है कि बल सास कह रही है कि बल बिना नट (मूंगफली बादाम पिस्ता अखरोट इत्यादि) के निर्बगि (शैतानी) ह्यूंद (बर्फीली सर्दी), कैसे रहना है ज्यूंद (जिंदा)?, तो बल कुळैं (चीड़ की प्रजाति के पेड़ की) गरमायशी शीत, है कुल की फरमायशी गीत (बहू को चील पंछी से संबोधित करते हुए सास गाती है), कि बल जा चिलंगो जा (चील जा), मदमस्त मलिंगो (मायके की मदमस्त फकीरन) जा, अपने चिल्ल गौं जा (यानी कूल कूल ठंडे  डरमीकूल गाँव जा, और टीप कर ले आ चिलगोजा (चीड़ का मेवेदार फल)। 

बल पिरूल म  रौड़ि
कनक्वै    घिसारौड़ि
खिलण पोड़ी  पोड़ि
चरि हत खुट्टा छोड़ि
त   लमडेर    भौजा
तु   लमलेट   हो जा
मि सणी छ्यूंतों  का
छुयाळुं बिच  खोजा

भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में अपनी बात को संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप आगे बढ़ाते हुए कहती है कि बल तथाकथित बहू (भाभी) पिरूल (चीड़ के पत्तों की सूखी पतझड़ी फिसलन भरी घास) में रौड़ि (फिसलकर), कैसे में घिसारौड़ि (गद्देदार पिरूल घास की सवारी कर पहाड़ी ढ़लान पर स्लाईडिंग करते हुए जोखिम भरा रोमांचक खेल), खेलना है पोड़ी पोड़ि (पड़े-पड़े), चारों हाथ पैर छोड़ि (छोड़कर), तो बल लमडेर (सुस्त) भौजा (भाभी), बल लमलेट (पैर पसार कर लेटने की मुद्रा में) हो जा, और उसे (अमुक) को छ्यूंतों (चीड़ के फल) के, छुयाळुं (बातूनी बच्चों के) बीच खोजो। 

ज्यै डाळाफर छिल्ल 
वैका  छ्यूंता  बिल्ल
मि तैलण्या  कातिल
रांदु पिरूल म पिल्ल
गठियै   बांधि   गठरि
भजंदु मरदुं कमज्वरि
नौटि नटुं  भौजा   छौं  
स्पाइनटव्रि बलक्यछौं?

भावार्थ
अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहती है कि बल जिस डाली पर छिल्ल (ज्वलनशील लालिमायुक्त लसलसी लीसेदार लकड़ी), उसके छ्यूंता (फलों के) बिल्ल, वह (अमुक) तैलण्या (तेलयुक्त) कातिल (तिल जैसी कातिल), रहती है तथाकथित पिरूल घास में पिल्ल (गुलबदन)।अमुक अंत में पहेली के अनुसार कहती और पूछती है कि बल गठिया (जोड़ो की बिमारी) की बांधकर गठरी, भगाती है वह मर्दों की कमजोरी, वह नौटी (दिमागदार/गिरीदार) नटों (मूंगफली बादाम पिस्ता अखरोट जैसे नट प्रजाति) की भौजा (भाभी) है, तो बताओ कि स्पाइनटव्रि (स्पाई यानी जासूस नटवरी) बल वह क्या है?

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'
प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार
मोबाइल नंबर-9810762253

नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ पजल में ही छंदबद्ध स्वरूप अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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