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ग्राम पंचैतौ बल मि क्य छौं? पजल-3---जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'. GARHWALI PUZZLE


ग्राम पंचैतौ बल मि क्य छौं? 
 पजल-3---जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'. GARHWALI PUZZLE

 जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'.गढ़वळि पजल,गढ़वळि,Garhwali Puzzle,पर्वतीय ब्राह्मण संघ

ज्यै का घर पर पंच  ह्वा

वै का  बल  परपंच  ह्वा

ज्यै का घर पर लंच ह्वा

वै का बल  सरपंच  ह्वा

बल बिंडी  खाणा  बान

टैर पंचर  सिर पंच  ह्वा

सरपंची क  मंचा  बान

गौं को बल सरपंच ह्वा


भावार्थ

फलाणा (अमुक) पंचायती राज की भूमिका स्वरूप अपनी बात को पहेली के प्रथम चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जिसके घर पर पंच (पंच परमेश्वर) हों, उसक बल परपंच (षड्यंत्र) हों, और जिसके घर पर लंच हो, उसके बल सरपंच, तो बल बिंडी (ज्यादा) खाने के बहाने, पेट का टायर पंचर सिर पंच (मुक्के का पंच) हो, तो बल सरपंची के मंच के बहाने, गाँव का बल सरपंच हो। 


बल बगैर  मुक्का लात 

कै दगड़ नि  मुलाकात

घूसा   बिन  घूसख्वरी  

बल नि सुधर्दा हालात

जुत्ता खाण्म देर निह्वा

तभै औ घुंड म्यार मुंड

झंडा लाण्म देर नि ह्वा

तभै औ झुंड म्यार ढुंढ


भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए अपनी बात को पहेली के दूसरे भ्रामक चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल बगैर मुक्का लात, किसी के दगड़ (संग) नहीं मुलाकात, तो घूसा बिन घूसखोरी, बल नहीं सुधरते हालात, तो बल जो जूत्ते खाने में देर नहीं हो, तो बल आ घुंड (घुटने) मेरे मुंड (सिर), यानी आ बैल मुझे मार, और बल झंडा लगाने में देर नही हो, तो बल आ झुंड मेरी ढुंढ (खोज), यानी बगैर आवाम के राजा का झंडा नहीं फहरता है, 'प्रजा है तो राजा है, वरना ढ़ोल बाजा है'। 


बल जु हाथी निरदुद्धो

त बल राजा  निरबुद्धो

जो सिरफिरा दबंग ह्वा

वोहि सिर से अपंग ह्वा

बल ज्यै की भी  जांठी 

त बल वै की  ही  भैंस

अर ज्यै की  भी  बांठी

त बल वै  की  ही  ऐश


भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट के ज्ञानमयी पहेली के दूसरे चरण में अपनी बात को संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जो हाथी निरदुद्धो (बगैर दूध के), यानी इतना बड़ा तन, फिर भी बगैर दूध का बर्तन, तो बल राजा निरबुद्धो (बगैर बुद्धि के), यानी राजा दूसरे के दिमाग के अनुसार ही चलता है, तो बल जो सिरफिरा दबंग हो, वह ही सिर से अपंग हो, यानी शक्तिशाली लंकेश जैसा राजा रावण दिमाग से पैदल नहीं होता, तो जोगी के भेष में वह माता सीता को हर कर नहीं ले जाता और फिर उसकी सोने की लंका भी नहीं जलती। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जिसकी भी जांठी (लाठी), तो बल उसकी ही भैंस, यानी यमराज की सवारी भैंस, और जिसकी भी बांठी (हर काम में हिस्सा/कमीशन), तो बल उसकी ही ऐश, यानी राजाओं के महल सुनहरी चांदी सोने के, और आम जनता के बिछोने गहरी हरी नींद सोने के। 


लंच  का  बगैर   संचैत 

मंच  का  बगैर   सचेत

नि हूंद बल कबरी  भी

पंच  का  बगैर   पंचैत

नोटुं शक्तिमा ज्यै सुनौ

वोटुं भक्ति मा वै  चुनौ

पंचतत्वौं मात्र रंच  छौं

ग्राम पंचैतौ बलक्यछौं?


भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे और अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहता है कि बल लंच के बगैर संचैत (लोगों की एकजुटता), और मंच के बगैर सचेत (जन चेतना), नहीं होती है बल कभी भी, पंच के बगैर पंचैत (पंचायत/पंचायती फैसला), तो बल नोटों की शक्ति में जिसकी सुनौ (बोलबाला), वोटों की अंधभक्ति में उसीका चुनौ (चुनाव)। अमुक अंत में पहेली के अनुसार कहता और पूछता है कि बल वह पंचतत्वों (अग्नि वायु जल थल आकाश स्वरूप पंचपरमेश्वर) मात्र रंच (जरा सा/क्षणभंगुर) है, यानी चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात, पांच साल के बाद कौन करे मेरी बात?, तो बताओ कि ग्राम पंचायत का बल वह क्या है?


जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ पजल में ही छंदबद्ध स्वरूप अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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