बारास्यूंकु बल मि क्य छौं?
पजल-4
रीड़ सणि काठो प्यारु
पीड़ सणि बांठो प्यारु
बीड़ सणि माटो प्यारु
घ्वीड़ सणि चांठो प्यारु
बल मी बारामासा
रंदु
बारहस्यूं बासा
त बैरखड़ि दुदभासा
बिंग्दु
बहुव्रीहि समासा
भावार्थ
फलाणा (अमुक) हिमालय के गंगाल (गंगा या गंगा की सहायक
नदियों) के तराई भाभर (मैदानी क्षेत्र से सटे पहाड़ी) एंव दलदली श्रेत्र की भूमिका
स्वरूप अपनी बात को पहेली के प्रथम चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल रीढ़ की हड्डी
को अपना काठो (शरीर) प्यारा, यानी रीढ़ शरीर का मजबूत आधार स्तम्भ होती है, तो शरीर
की पीड़ (पीड़ा) को अपना बांठो (हिस्सा) प्यारा, यानी मिल बांट करकर ही कष्ट पीड़ा
कम होती है, तो बल बीड़ (बीहड़ सुनसान इलाके) को अपना माटो प्यारा, और बल घ्वीड़ (उत्तराखंड
के राज्य पशु कस्तूरी मिरग) को अपना चांठो (दुर्गम चट्टानी क्षेत्र) प्यारा, यानी हर
जीव को अपनी माटी अपनी मातृभूमि प्यारी होती है। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते
हुए कहता है कि बल वह बारामासा (बारह महीने), रहता है बारहस्यूं (पौड़ी जिले का एक
परगना, जिसमें 15 पट्टियां-नाँदलस्यूँ, इडवालस्यूँ, बणेलस्यूँ, सितोनस्यूँ, रावतस्यूँ,
बनगढ़स्यूँ, पैडुलस्यूँ, कफोलस्यूँ, खातस्यूँ, पटवालस्यूँ, असवालस्यूँ, मन्यारस्यूँ,
गगवाड़स्यूँ, कंडवालस्यूँ और मन्यारस्यूँ पश्चिमी आते हैं) के बासा (निवास में), तो बल बैरखड़ी (हिंदी भाषा
की बारह खड़ी- अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अ:) दुदभासा (मातृभाषा), बिंग्दु (सीखता है)
अपने स्वरूप में बहुव्रीहि समासा (व्याकरण में एक समास का अलंकार, जिसमें संख्या को
अलंकृत किया जाता है, जैसे बारामासा बारहस्यूं बैरखड़ी में बारह की संख्या को अलंकृत
किया गया है)।
बल गंगाल
का किनरा
भाभर तराइ इलका
घना बुग्यालों म हरा
रौंत्येलुं च
म्यरु मुलका
बिन कमलका दलबदल
म्यर दलदलम आओ नि
बिन गोइंजक गाओनि
क्वि मनोरंजक गाओ नि
भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में अपनी बात को पहेली
के दूसरे भ्रामक चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल गंगाल (गंगा या गंगा की सहायक
नदियों) के किनरा (किनारे), उत्तराखंड के भाभर तराई (उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्र
से सटे) इलका (इलाके), घने बुग्यालों (पठारों) में हरे, रौंत्येलुं (रमणीक) है उसका
मुलका (मुल्क), तो बल बिन कमल के दल बदल, उसके दलदल में आओ (आए) नहीं, बिन गोइंजक
(अमुक की नर प्रजाति) गाओनि (अमुक की मादा प्रजाति), कोई गीत मनोरंजक गाओ नि (गाए नहीं),
यानी अमुक के सुरताल में पूरी प्रकृति ताल से ताल मिलाकर घसियारिनों के बाजूबंद गीत
गाती है।
बादल का रेन डियर
आंचल का
ऐन नियर
रॉयल चैलेंज दगड़
ह्वै रॉयल स्टेग
बियर
कान्हा टाइगर रिजर्व
भूरसिंह
द बारसिंगा
रांदु बारसिंगा रिजर्व
बाग दग्ड़ काजीरंगा
भावार्थ
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट
स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में अपनी बात को संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप
आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल बादलों का रेन डियर, अमुक के आंचल के ऐन (आए) नियर (नजदीक),
तो बल पहाड़ों में रॉयल चैलेंज दगड़ (संग), हुई रॉयल स्टेग बियर (राजसी चैलेंज के साथ
राजसी मदिरा पान)।अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल कान्हा टाइगर
रिजर्व (गुजरात) में, भूरसिंह द बारसिंगा नामक अभयारण्य क्षेत्र में, रहता है बारहसिंगा
रिजर्व, बाग (बाघ) के साथ काजीरंगा (असम के वन अभयारण्य छेत्र यानी सेंक्चुरी में),
यानी इकोलॉजिकल संतुलन हेतु शिकार और शिकारी दोनों की भूमिका अहम होती है।
जु बागेश्वर की रीच
हुंद स्वर्ण मिरग मारीच
त मि हि
फॉरेस्ट रेंजर
छौं इन हि ग्रेट डेंजर
हिरण साम्भर
चिंकारा
भ्वर्दन मि दगड़ हुंगारा
काखड़सि भलुचंगा छौं
बारास्यूंकु बलमि क्यछौं?
भावार्थ
अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी
संरचनात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहता है कि बल जो बागेश्वर (उत्तराखंड
के बागेश्वर जिले में स्थापित बाघ के रूप में भोले शंकर बाबा बागेश्वर) की रीच (यानी
श्रीराम की पहुंच), होता है स्वर्ण मिरग मारीच (रावण का मामा, जिसे मजबूरन सीता माता
के हरण हेतु माया जाल रूपी स्वर्ण मिरग बनकर श्रीराम के तीर से मोक्ष प्राप्ति फलित
हुई), तो बल अमुक ही फॉरेस्ट रेंजर (जंगलात
यानी शेर के जंगल का अधिकारी), है ऐसे ही ग्रेट
डेंजर (खतरे की रेंज में), यानी अमुक राजकीय संरक्षण प्राप्त जीव है। अंत में
अमुक पहेली के अनुसार कहता और पूछता है कि बल हिरन साम्भर चिंकारा, भरते हैं उसके
(अमुक) दगड़ (संग) हुंगारा (कहानी स्वरूप बच्चों की तरह 'हां में हां' मिलाते हैं),
बल काखड़ (मिरग) सा वह भलाचंगा है, तो बताओ कि तथाकथित बारास्यूं (पौड़ी जिले के परगना
क्षेत्र) का बल वह क्या है?
जगमोहन
सिंह रावत 'जगमोरा'
प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार
मोबाइल नंबर-9810762253
नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी
ओपन निशानदेही के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है
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