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राणियों खुण बल मि क्य छौं?-PUZZLE-19 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE


राणियों खुण बल मि क्य छौं?-

PUZZLE-19 

JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.

 GARHWALI PUZZLE

बल कख नीती  कख  माणा

स्यूंकारन कख  कख  जाणा

अर कख भंडरी  कख  राणा

भाटन  कै  का  यख   खाणा

जु  भंडरी  राणा  समधि  ह्वा

त यन क्वै समै अवधि निह्वा

पैलि  आपै ‌  पैलि   लखनवि

इकगाळपाणि अवधि नि‌ ह्वा

भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) उत्तराखंड के दो राजपूत जातियों भंडारी और राणा के आपसी समधी के रिश्तों की भूमिका स्वरूप भाट/चारण की दान दक्षिणा के मद्देनज़र अपनी बात को पहेली के प्रथम चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल कहां नीती कहां माणा (उत्तराखंड चमोली जिले के दो‌ सीमांत गाँव जिनकी आपस की दूरी ही 250-300 किलोमीटर से अधिक है कि किसी सेवाकार जैसे डाकवान, पटवारी, अठ्वाड़ की पूजा करवाने‌ वाले सेवाकार इत्यादि को दोनों जगह एक समय में पैदल मार्ग से आना जाना असंभव है), तो बल स्यूंकारन (सेवाकार) ने कहां-कहां है जाना, और बल कहां भंडारी (माधोसिंह भंडारी की तरह श्रीनगर राज्य का भंडारगृह का व्यवस्थापक) कहां राणा (महाराणा प्रताप की तरह श्रीनगर राज्य का रणबांकुरा/वीर योद्धा), तो‌ बल भाट/चारण ने दोनों में से किसके यहां खाना। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जो भंडारी और राणा समधी हुए, तो ऐसी कोई समय की अवधि नहीं हुई, कि जब 'पहले आप पहले आप ‌की लखनवी अंदाज में' (यानी जब तथाकथित भाट मांगने‌ हेतु दोनों समधियों से एक ही समय में दान दक्षिणा की विनती करता है तो, तो दोनों ही लखनवी अंदाज में कहते हुए बेचारे भाट की वाट ही लगा डालते हैं, यानी भाट की हरिद्वार से मंसूरी एक्सप्रेस तक भी छूट जाती है), एक गले पानी की अवधि (यानी अवध के राजाओं की तरह सतरंज के खेल संग एक दूसरे की जूठी दवाई दारू) नहीं हो, यानी दोनों समधियों का एक दूसरे के बगैर जीना दुस्वार है, यानी जैसे गंगा‌ जमुना का संगम में एक दूसरे का‌ पानी पीकर अर्द्धनारीश्वर‌ स्वरूप एक दूसरे में आत्मसात होना हो, यानी दो शरीर एक जान। 


बिंडि बिरळुं म मूसा नि‌ म्वर्दा

त बिंडि दातुंम दान नि‌मिल्दा

आप   भंडरी  अन्न    कुठारा

आप्क    बासमती     भंडारा

त   आप   राणा   रणबांकुरा

ज्यै कु  झमड्यै  द्यो  बाखरा

त बल  ह्ये  सिमान्या  ठखरों 

बागेश्वरा   कंध   म    बखरो

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के दूसरे चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल 'बिंडि बिरळुं म मूसा नि‌ म्वर्दा', यानी 'अधिक बिल्लियों में चूहे नहीं मरते', क्योंकि वे सास-बहू‌ हों‌, तो‌ आपस में लड़ते मरते रहें, और अगर भंडारी जी और राणा जी की तरह समधी-समधी हों, तो 'पहले आप पहले आप के लखनवी अंदाज में रोजाना न जाने कितने ही छुटभैया नेताओं की दिल्ली की ट्रेन ही छुटवा दें',तो बल 'बिंडि दातुंम दान नि‌मिल्दा', यानी‌ अधिक दानी-दाताओं‌ में दान‌ नहीं मिलता, जैसे एक राजा के आह्वाहन पे राज्य के सभी लोगों को एक-एक बाल्टी दूध का दान तालाब में डालने को कहा‌‌ गया था, मगर अगले दिन राजा को केवल‌ पानी का भरा हुआ तालाब हीं नजर आया। अमुक अपनी बात को तथाकथित भाट के कथनानुसार आगे कहता है कि बल आप भंडारी हैं अन्न कुठार के, आपके बासमती चावल भरे हैं भंडार के, तो आप राणा हैं रणबांकुरे (महाराणा प्रताप की तरह वीर योद्धा), जो जिस किसी के भी झमड्यै द्यो (मार दो) बाखरे (बकरे), तो बल हे सिमान्या (आदरसूचक नमस्कार है) ठखरों (ठाकुरों), बागेश्वर (कुमाऊं मंडल के बागेश्वर धाम में शिवजी बाघ के स्वरूप में प्राण प्रतिष्ठित हैं, और भाट/चारण को शिव का अंश माना जाता है, तो भाट) के  कंधें में बखरो (बकरा), यानी 'भागते हुए चोर की लंगोटी ही सही, और मारे हुए गोट (बकरे) की गोटी-बोटी ही सही'। 


भंडरी  चौंल   द्ये  की  ‌ मांड 

मंगणू   दूंण ‌  द्ये  की  ‌ भांड

राणा   बखरु  द्ये  की  सांड

मगणू   लूंण  द्ये   की ‌ खांड

कख भंडरी कख बल राणा

अकबर कख  प्रताप  राणा

ज्यैक  अठरा  गजा   चोला

गात  मा  नौ   गजा   ताणा

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ते हुए कहता है कि बल भंडारी चावल देकर मांड, मांग रहा है दूंण ‌(32 किलो चावल का कट्टा) देकर भांड (बर्तन), यानी भाट को कम देने के चक्कर में अपनी बहुमूल्य चीज को बेचकर कम मूल्य की चीजें खरीद रहा है, और राणा बखरा देकर सांड, मांग रहा है लूंण (नमक) देकर खांड (गुड़ का बूरा), यानी राणा जी 'आ बैल मुझे मार' के चक्कर में यमराज को न्योता दे रहे हैं और शुगर के चक्कर में‌ शुगर की बिमारी को न्योता दे रहे हैं। अमुक अपनी बात को पुनः‌ आगे बढ़ाते हुए तथाकथित भाट के कथनानुसार कहता है कि बल कहां भंडारी कहां बल राणा, कहां अकबर कहां प्रतापी राणा,‌ जिसका अठारह गज का चोला (यानी मेरा रंग दे बंसती चोला, सनातन धरम के रक्षक महान संत अमुक योद्धा का अजर अमर चोला), गात में नौ गज का ताणा (कमरबंद/बैल्ट), यानी जिसने नौछमी नारायण (नौ कला सिद्धहस्त श्री कृष्ण जी) की तरह महाभारत के युद्ध‌ में गीतोपदेश हेतु नौ गज की बैल्ट से कमर कस ली हो, तो महाभारत को विश्वगुरु/विश्व विजयी भारत बनने में देर नहीं। 


बल  ज्यै  की  ऊंची  दुकान

त  वै  का   फीका  पकवान

त बल यु ही  सोची  फुकान

कैगि  राणा  बणि   भगवान

बल  राणा  जी  कर्यां  माफ

भूल चूक  गल्ति  माइ  बाप

रणिहाटा  गांदु   गाणा   छौं

राणियों खुण बलमि क्यछौं?


भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे और अंतिम चरण में अपनी संरचनात्मक एवं‌ गुणात्मक विशेषताओं का जिक्र करते हुए तथाकथित भाट के कथनानुसार आगे कहता है कि बल जिसकी ऊंची दुकान, तो उसके फीके पकवान, तो बल यही सोचकर फुकान (फूंक झोपड़ी‌ देख तमाशा,यानी सब कुछ भाट पर लुटा), कर राणा बन गया भगवान (शिवजी सब कुछ लुटाकर मात्र बाघ की खाल ओढ़कर कैलाश में स्थापित रहते हैं), तो बल राणा जी करना माफ, भूल चूक गलती माई बाप, यानी 'राणा जी माफ करना गलती म्हारे से हो गई...।' अंत में अमुक पहेली अनुसार‌ प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि बल रणिहाट का गाता वह गाणा (गाना) है (श्रीनगर एस०एस०बी कैम्पस के ठीक सामने गंगापार अलकनन्दा के दांयें किनारे पर २०० फीट ऊंची चट्‌टान पर रणिहाट नामक स्थान है, जहां पर राजराजेश्वरी देवी का बहुत प्राचीन तथा विशाल मंदिर है। मन्दिर की ऊंचाई लगभग ३० फीट है तथा इस मन्दिर में मुख्य मूर्ति भगवती की है। इसके मण्डप की छत विशेष रुप से अपने वृहदाकार, भार एवं भौली यानी हिस्से से ध्यान आकृष्ट कराती है। वास्तुविदों ने इसे 'फंसाण' का नाम दिया है। नीचे से आठ विशाल प्रस्तर स्तम्भ इसके आधार और टिकाव को मजबूती प्रदान करते है। इस मन्दिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सोये हुये शंकर की नाभि पर चतुर्भुजी रूप में मां राजराजेश्वरी (देवी पार्वती) पद्‌मासन मुद्रा में विराजमान हैं। इसके पीछे लाल पर्दे के पीछे देवी की विशाल शिला मूर्ति है, जिसके दर्शन पूर्णतया वर्जित हैं।‌ नवरात्रों और चैत्रमास में यहां विशेष पूजा होती है। पुराने समय में यहां देवदासी प्रथा थी। अनेक देवनारियां मन्दिर में देवी भगवती की पूजा अर्चना करती थीं। थड़िया को देवताओं का नृत्य गीत माना जाता है, जिसकी विषय वस्तु धार्मिक भावना से लेकर प्रकृति और समाज में घटित घटनाएं होती हैं।गढ़वाल में चैत के महीने में विवाहित स्त्रियां जब मायके आती हैं, तो सामुहिक थड़िया नृत्य गीत करतीं हैं। श्रीनगर‌ राज्य के वीरभड़ माधोसिंह भंडारी (जो‌ मलेथा की कूल से इतिहास में अमर हैं) के बेटे गजेसिंह पर आधारित एक सुप्रसिद्ध थड़िया गीत है- 'रणिहाट नि जाणो गजेसिंह/मेरो बोल्युं मान्याली गजेसिंह'। तो‌ बताओ कि राणियों (रानियों) के लिए बल वह क्या है?


जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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