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सूरदारु बल मि क्य छौं?PUZZLE-20 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE


सूरदारु बल मि क्य छौं?

PUZZLE-20 

JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. 

GARHWALI PUZZLE

जु बिंडि  परिचै  निह्वैणी

बिकळाण  बेजति   हुंदा

मलियागिरि कि  भीलनी

बल चंदन हि जलै  दिंदा

भोजवास   कि   गुसैंणी

भोजपत्र हि  जलै  दिंदा

तनि द्योभूमि कि  पदनी

द्योदार  हि  जलै   दिंदा

भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) अपनी सूरदारु यानी देवभूमि में उगने वाले देवतुल्य वृक्ष की भूमिका स्वरूप पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जो बिंडि (अधिक) परिचय के निह्वैणि (नहीं होने के आसार), यानी घर की मुर्गी दाल बराबर, बिकळाण (अरुचि) बेकदरी होती है, तो मलियागिरि (मैसूर, कर्नाटक के जंगल) की भीलनी (जनजाति की औरत), बल बहुमूल्य चंदन ही जला देती है, यानी नासमझी में अपने बहुमूल्य जंगलों को नष्ट कर देना यह मूर्खता नहीं तो और क्या है? ठीक इसी तरह भोजवास (चमोली जिले में स्थित श्रेत्र जो भोजपत्र के बहुमूल्य वृक्षों की वजह से परिभाषित है) की गुसैंणी (मालकिन/वनरक्षक), नासमझी में भोजपत्र ही जला देती है, यानी नासमझी में रक्षक ही भक्षक बन जाता है, और ऐसे ही देवभूमि की पदनी (गाँवों की प्रधान सेवक), देवदार (देवतुल्य औषधीय वृक्ष) ही जला देती है, यानी अगर पानी ही आग लगाए, तो फिर आग को कौन बुझाए? यानी मैसूर कर्नाटक जैसे ही‌ देवभूमि में भोले-भाले आदिवासियों की आड़ में तस्कर अपने पैर पसारकर वन संपदा को भारी नुकसान पहुंचाते हैं, हाँलांकि 'चिपको आंदोलन' के जरिये देवभूमि उत्तराखंड में वन संरक्षण की ओर जागृति आई है। 


बल जु देवदारु  नि  ह्वा

त्येल्ण्य दवैदारु नि  ह्वा

अर जु स्यूड़दारु नि ह्वा

त बल सूरदारु  नि  ह्वा

वाइनम ब्यल्मैकि मिस

ह्वैजंदन बल किशमिश

पाइनम कल्मैक एप्पल

ह्वै  जंदन   पाइनएप्पल

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के दूसरे भ्रामक चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जो देवदारु (देवदार, चीड़ की प्रजाति का देवतुल्य वृक्ष) नहीं होए, तो त्येल्ण्य (तेलयुक्त) दवाई दारु (आयुर्वेदिक औषधि) नहीं होए, यानी अमुक के पेड़ के तेल के सेवन से कीड़े नष्ट होते हैं, धाव हरे-भरे हो जाते हैं, और जो स्यूड़दारु (सुईनुमा/शंकुधारी वृक्ष) नहीं होए, तो बल वह सूरदारु (देवभूमि में उगने वाला देववृक्ष) नहीं होए। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल वाइन में ब्यल्मैकि (मदहोश होकर) मिस (नवयौवना अंगूरियां), हो जाती हैं बल किशमिश, तो पााइन (चीड़ वृक्ष) में कल्मैक (कलमी होकर/आत्मसात होकर) एप्पल, हो जाते हैं पाइनएप्पल। अनादिकाल से देवभूमि में डोटीकरण (दो का एक दूसरे संग कलमीकरण/आत्मसात होना) होता आया है, अर्द्धनारीश्वर (शिव और शक्ति से), नरसिंह (नर और सिंह से), पशुपति नाथ (पशु‌ और नाथ से), दालचीनी (दाल और चीनी से), डोटली (गेंहू और कोदे के आटे से), देवदारु (देव और वृक्ष से), ऐसे ही बहुत से उदाहरण देवभूमि में डोटीकरण/कलमीकरण को परिभाषित करते हैं। 


ताड़केश्वर   म   त्रिशूल

ह्वेजंदन रक्षक  हि शूल

त पिंगळा  फूलुं  ‌पराग

ह्वेजंदन तिलक म कूल

सनोवर  जनु   शंकुदार

क्रिसमसुं रौंतेलु सिंगार

छौं मि  लमछड़ु  केदार

चंदन  जनु   खुशबूदार

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल ताड़केश्वर (पौड़ी जिले के जहरीखाल ब्लॉक में स्थित महादेव का सुप्रसिद्ध मंदिर स्थल, जहां पर शिवजी ने ताड़केसुर नामक राक्षस का वध किया था) में त्रिशूल, हो जाते हैं रक्षक ही शूल, यानी तथाकथित देवस्थान में अमुक भोलेनाथ के त्रिशूल के रूप में भक्तों की रक्षा हेतु अमुक विराजमान हैं, तो अमुक के पिंगळा (पीले) फूलों के पराग, हो जाते हैं तिलक में कूल (तरोताजा ठंडक प्रदत्त), तो सनोवर (फरदार क्रिसमस ट्री/चीड़ की प्रजाति के पेड़) जैसा अमुक शंकुदार (शंक जैसा पिरामिडाकार), क्रिसमस का रौंतेलु सिंगार (रमणीक शृंगार), है अमुक लमछड़ु केदार (लम्बा साक्षात केदारनाथ स्वरूप), चंदन जैसा खुशबूदार (अगरबत्ती प्रदत्त)। 


बल म्यरि तासीर  गरम

हुंद घौ म त्योल मरहम

ह्युंदै पुटगिपिड़ा हजम 

कर्दु बवासीर  मि नरम

मौसमि  सदाबार   छौं

मि  पिरामिडाकार  छौं

पथरि दमौ कर्दु  संहार 

सूरदारु बल मि क्यछौं?

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे और अंतिम चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक औषधीय विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहता है कि बल उसकी तासीर गरम, होती है, घाव में तेल मरहम, तो ह्युंदै पुटगि पिड़ा (सर्दियों का पेट दर्द) हजम, करता है बवासीर वह नरम। अंत में अमुक पहेली अनुसार कहता और पूछता है कि बल मौसमी सदाबहार है, वह पिरामिडाकार है, पथरी दमे का करता संहार, तो बताओ कि सूरदारु (देवभूमि का देववृक्ष) बल वह क्या है?

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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