Advertisement

फिंगर्या बल मि क्य छौं? पजल-6 जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'. GARHWALI PUZZLE

 


फिंगर्या बल मि क्य छौं? पजल-6 जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'. GARHWALI PUZZLE

बल साट्टी बण्युं गुलाम

ग्यूं चाकरि करु सलाम

अर  कोदा  बल  राजा

जब  सेका  तब  ताजा

ता  बल   ह्ये   जापानी

तु  माछु  खै जा  पाणी

तिन कल्योमा द्योभूम्यु

बेबीफूड   हि    खाणी

भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) अपनी डंडगौं (पहाड़ी पर बसे) बनालपट्टी (उत्तरकाशी जिले का क्षेत्र जो कोदा खाने वालों के नाम से सुप्रसिद्ध है) की उखड़ी सार (असींचित खेत/बारिश पर निर्भर खेतों) की भूमिका स्वरूप अपनी बात को पहेली के प्रथम चरण में 'फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट' की तर्ज पर आगे बढ़ाते हुए कहता है है कि बल साट्टी (धान) बना हुआ है गुलाम, तो ग्यूं (गेंहू) चाकरी (नौकरी) करे सलाम, और कोदा (मंडुआ/रागी) बल राजा, जब सेको तब ताजा, यानी धान के चावल, गेंहू की रोटी, झंगोरे यानी समा की खीर, दालें इत्यादि ठंडे बस्ते में पड़ते ही बासी हो जाती हैं, मगर मंडुआ के खाद्य पदार्थ गरमागरम गरम तासीर के हमेशा बिस्कुट की तरह तरोताजे रहते हैं, इसीलिए देवभूमि उत्तराखंड में कोदे/मंडुवे की बासी रोटी को बिस्कुट की तरह सुबह के चाय नाश्ते में खाने का प्रचलन है। अमुक जापानी दादा के उत्तराखंड के एक गाँव में चाय-नाश्ते के दौरान के प्रसंग का जिक्र करते हुए अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता कि घर की दादी तथाकथित जापानी दादा से कहती है कि बल हे जापानी,  माछु (मछली) खा जा पाणी (चाय पानी), तिन (उसने) कल्यो (सुबह के नाश्ते) में द्योभूम्यु (देवभूमि में), बेबीफूड ही खाणी (खाना है), यानी अमुक जापान में बेबीफूड के नाम से प्रचलित है।

बल खा सुबेरौ  कल्यो

दगड़ा मा साग  पल्यो

बल साग पल्यो  भलो

त प्लेट वापिस  ले लो

भैर  फुंड  लंबी  धोती

भितर मंडुआ कि रोटी

त बल भैर धौ  पर  धौ

भितर बाड़ी अर पल्यौ

भावार्थ

अमुक अपनी बात को भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी दूसरे चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है है कि बल तथाकथित घर की दादी जापानी दादा को सुबह का नाश्ता परोसते हुए कहती है कि बल खा सुबह का कल्यो (काली रोटी का नाश्ता), दगड़ा (साथ) में साग पल्यो (छांछ मिश्रित चून का साग), तो जापानी दादा अपनी अजन्मी मूंछों पर ताव से 'फिंगर' फेरते हुए आत्म तृप्ति के भाव में गदगद होकर बड़े शिष्टाचार भाव में काली रोटी को प्लेट समझते हुए कहता है कि साग पल्यो भलो, तो बल प्लेट वापिस ले लो।  लेकिन जब दादी तथाकथित जापानी दादा को बताती है कि वह काली प्लेट नहीं है, वह सुपर फूड देवताओं को अर्पित होने‌ वाला काला रोट है, यानी वह 'अथिति देवो भव: के भक्तिभाव से सुवासित है', तो जाते-जाते तथाकथित जापानी दादा तथाकथित दादी से ब्यंग स्वरूप कहता है कि बल हे दादी, भैर फुंड (घर के बाहर) लंबी धोती (यानी देवभूमि के परिधानों में नारियों के अंगों की प्रदर्शनी नहीं होती), और घर के भीतर मंडुआ की रोटी, तो बल भैर धौ पर धौ (बुलंद आवाज पे आवाज, ताकि पूरे विश्व में सुपर बेबीफूड के गुणों की चर्चा हो), भीतर बाड़ी (कोदे/मंडुवे का फीका हलवा) और पल्यो (छांछ में बना चूने के आटे का साग)।

कमल क मालवा सेरा

लाटी    मनड   सेरा

बल मंडुआ डाला फर

त्यै  डोंडा  सणि  ह्येरा

कोदु  खव्वौन   सराई

बनाल   दगड़   लड़ाई

भैर लग्यां  छन  ताला

भित्रनि मुसामर्नु गाला

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में अपनी बात को उत्तरकाशी जिले के तथाकथित बनाल पट्टी (जहां कोदा बहुतायत में होता है), के परिवेश में जलनशील झगड़ालू पड़ोसी पट्टियों का जिक्र करते हुए कहता है कि बल कमलसिराईं पट्टी (कमल नदी के किनारे स्थित घाटी क्षेत्र, शानदार स्वादिष्ट लाल चावल के लिए सुप्रसिद्ध) मालवा सेरा (सिंचित खेत) और लाटीसिंराई पट्टी (अत्यंत स्वादिष्ट उखड़ी धान की सुप्रसिद्ध घाटी क्षेत्र) के मनड सेरा (उखड़ी यानी असिंचित उखड़ी धान के खेत), जहां मंडुआ पैदा नहीं होता, वहां के धान के खेतों के बीच बल मंडुआ की डाली पर, उस डोंडा को ह्येरा (गौर से देखो), जरूर यह  लड़ाई की जड़ कोदा खाने वाली बनालपट्टी ने सराई (फैलाई), तो बल तथाकथित कमलसिराईं और लाटीसिंराई पट्टियों (दोनों धान की पट्टियों के घमंड में चकनाचूर) की बनालपट्टी (कोदे की पट्टी) के साथ हुई लड़ाई, तो ब्यंग स्वरूप कहावत शुरू हो गई कि बल बनालपट्टी के अन्नभंडारों के बाहर सुरक्षार्थ लगे हुए हैं ताले, मगर घरों के भीतर नहीं है मुसामर्नु (चूहे मारने हेतु) गाला (काली रोटी का टुकड़ा)। शायद तब तथाकथित कमलसिराईं और लाटीसिंराई पट्टियों को मालूम नहीं था कि जब कोई जापानी दादा बनालपट्टी में आएगा, तो उसकी जापानी सुपर टैक्नोलॉजी द्वारा तथाकथित काली रोटी एक दिन सुपर बेबीफूड बनकर सोना पैदा करेगी, जो आज एक यथार्थ सच्चाई है।

भै भित्र नीचा आलण

देळि म नाचा  बालण

घरजवैं   गधा  बरुबर

केदारु   नंदा   बरुबर

गरीबुं  मोटु  नाज  छौं

कालो  रोटुं  नाज  छौं

कुदड़ि कुद्रेटुं गोदु  छौं

फिंगर्या बल मि क्यछौं?

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहता है कि बल घर के भीतर नी चा (नहीं है) आलण (पतली साग को गाड़ा करने हेतु चूने के आटे का घोल), और बल देळि (दहलीज) में नाचे बालण (कालारोंट छकने वाले श्यामल देवता, यानी बद्रीनाथ विष्णु भगवान और केदारनाथ बाबा शिव शंकर), तो बल नंदादेवी के मायके में घरजंवाई गधा बराबर, इसलिए कैलाश केदारनाथ में केदारु (कोदे के खेतों में पलने से केदार बाबा का ऐसा नाम पड़ा) नंदा बराबर, यानी अर्द्धनारीश्वर में शिव और शक्ति दोनों समान रूप में विराजमान हैं। अंत में अमुक पहेली के अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि बल वह गरीबों का मोटा अनाज है, तो कालोरोट यानी बद्रीनाथ विष्णु भगवान और केदारनाथ बाबा के नाज (समर्पण भाव) है, वह कुदड़ि (अमुक के खेत) कुद्रेटुं (सूखे डंठलों) का गोदु (उत्तरखण्ड में मछलियों को फांसने का तरकश रूपी यानी तीर रखने हेतु सूखे डंठलों का जाल) है, जापानी लोग तथाकथित कालेरोट को कांटे में लगाकर फिसिंग करने में सिद्धहस्त हैं, तो बताओ कि फिंगर्या (फिंगर की तरह बिखरे बालों/बालियों) वाला मिलेट (जापानी बेबीफूड) बल वह क्या है? 

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253

नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ पजल में ही छंदबद्ध स्वरूप अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है


Post a Comment

0 Comments