खुद
खुद ही लिखता हूँ उसे
खुद ही उसे मिटा देता हूँ
अपने समीप से रोज
यूँ ही मैं गुजर जाता हूँ
सीख लिया है उसके संग
मैंने अब रहने का तरीका
याद जब आता है वो तो
दो आसूं बहा लेता हूँ
इस तरह खुद को मनाकर
खुद ही खुश हो जाता हूँ
खुद ही लिखता हूँ उसे ..........
बालकृष्ण डी. ध्यानी
खुद ही लिखता हूँ उसे
खुद ही उसे मिटा देता हूँ
अपने समीप से रोज
यूँ ही मैं गुजर जाता हूँ
सीख लिया है उसके संग
मैंने अब रहने का तरीका
याद जब आता है वो तो
दो आसूं बहा लेता हूँ
इस तरह खुद को मनाकर
खुद ही खुश हो जाता हूँ
खुद ही लिखता हूँ उसे ..........
बालकृष्ण डी. ध्यानी
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