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अब वक्त आ गया है

 


अब वक्त आ गया है

अब वक्त आ गया है
लगता है
विरम ले लेने का
दूर एकांत में अकेले
स्थान लेने का
अब वक्त आ गया है
खुद को
बदलने चला था
खुद ही
बदल गया मै
पिंजड़ा बना कुछ ऐसा
उस में
खुद फंस गया मैं
लगता है
उसे तोड़ने का
अब वक्त आ गया है
हर रंग में रंगा मै
हर अंग से जा लगा मैं
ना मिला मुझे
कोई ऐसा
जिसे कहूं
वो मैं हूँ
वो मेरा अपना सा
अब वक्त आ गया है
प्रकृति से जुड़ने का
जिसने दिया है
मुझे अब तक
निस्वार्थ भाव से
उसके लिए कुछ
कर गुजरने का
अब वक्त आ गया है

बालकृष्ण डी. ध्यानी

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