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चम्पावतै बल मि क्य छौं? PUZZLE-22 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE


चम्पावतै बल मि क्य छौं?

PUZZLE-22

JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.

 GARHWALI PUZZLE

जनी घम्म घमकी  घाम

फुलुं घाटी  मा  बिजाम

तनी चम्म चमकी  चाम

चम्पावत  मा  गुलफाम

चम्पावत  चमोली   का

बल  नौ  दरजा  स्कूला

छन चम्पा  चमेली  का

बल  नौ  दरजा   फूला

भावार्थ

अमुक उत्तराखंड देवभूमि के फूलों की घाटी, चमोली (चमोली जिले) और चम्पावत (कुमाऊं मंडल के तराई) जिले की भूमिका स्वरूप अपनी बात को पहेली के प्रथम चरण में आगे बढ़ाते हुए कहती है कि बल जनी (जैसे ही) घम्म घमकी घाम (तेज धूप खिली), फूलों की घाटी में बिजाम (अधिक मात्रा में/तेज), वैसे ही चम्म चमकी चाम (गुलबदन/फूलबदन खिली), चम्पावत में गुलफाम (अत्यंत सुंदर), तो बल चम्पावत चमोली के, बल नौ दरजा स्कूला (नौवीं कक्षा में), हैं जुड़वां बहने चम्पा चमेली के, बल नौ दरजा फूला (नौ किस्म के फूल), यानी चम्पा के पंचपरमेश्वर स्वरूप पांच किस्में (सोन, नाग, कनक, सुल्तान एवं कटहरी) और चमेली की स्वास्तिक स्वरूपा चार किस्में (जैस्मिन, जूही, मोगरा एवं बेला) हैं। 


सोन ब्योल्या लटुळ  मा

लगौ सुगंधित त्योल इत्र 

नाग  ब्योला  मुंडळ  मा

लगौ विष्णुसि छायाछत्र

कनक  बेद्या  मंडल  मा

लगौ क्येला फिर्का  पत्र

त सुल्तान बणीकी मित्र

रौ   कटहरी   कटहलित्र

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के भ्रामक दूसरे चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती है कि सोन ब्योल्या (दुल्हन) के बालों में, लगाए सुगंधित तेल इत्र, यानी दुल्हन के गजरे में सुशोभित होती हैं, तो नाग ब्योला (दूल्हे/वर नारायण) के सिर में, लगाए विष्णु नारायण जैसी छायाछत्र (छत्रछाया), यानी पंखुड़ियां नाग के फन की तरह हैं, जो दूल्हे के सिरोधार्य होती हैं, तो कनक बेदी के मंडल (मंडप) में, लगाए केला फिर्का पत्र, यानी बेदी में अमुक पंचपरमेश्वर (विष्णु शिव पार्वती गणेश एवं सूर्य) स्वरूप दूल्हे दुल्हन को आशीर्वाद देने हेतु बेदी में सुशोभित होती है, तो सुल्तान सफेद घोड़ों के रूप में बनकर मित्र, यानी वीर वीरांगनाओं के घोड़े सदैव मित्र बनकर साथ रहते हैं, कटहरी कटहलित्र, यानी जो‌ कटहल जैसे इत्र में सराबोर रहकर दूल्हे-दुल्हन की जिंदगी की सारी समस्याओं की कटहल जैंसी बाहरी जटिलताओं को काटकर अंदर के गूदेदार दिमाग से तरोताजा हल ढ़ूढ़ने में सक्षम होती हैं। 


चम्पक त्वेमा तीन गुण

छन रंग रूप अर  वास

फेर यना क्या  अवगुण

जु म्वारो नि आवु पास

राधिका   जनु   रुपसी

म्वारू किसना कु दास

दासौं    हूंदी     बेवसी

त म्वारो नि आवु पास

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए चम्पावत के लोगों के कथनानुसार कहती है कि बल चम्पक (चुंबकीय देवीय शक्ति से परिभाषित) त्वेमा (तुझ में/अमुक में) तीन गुण, हैं रंग रूप और वास (सुगंध), फिर ऐसे क्या अवगुण? जो म्वारो (भंवरा) नहीं आए पास, तो प्रत्योत्तर में अमुक कहती है कि वह राधिका (राधा) जैसी रुपसी (रूपवती), म्वारू (भंवरा) श्री कृष्ण का दास, तो बल दासों की होती है अपनी मर्यादित बेवसी (मजबूरी), तो म्वारो (भंवरा) नहीं आए पास। ऐसे में सवाल उठता है, कि जब भंवरा अमुक के पास नहीं आता, तो क्या राधिका स्वरूपा अमुक का परागण (नर के परागकणों का मादा के परागकणों में निषेचन की क्रिया) नहीं होता? और अगर नहीं तो, फिर अमुक की वंशवृद्धि का वाहक कौन है, जो विष्णु जी के वरदान से‌ फलित है। 


भृगंराज म्यरा परांगण 

नि कर्दु म्येरो  परागण

इलै  भृंगकीट   गुबैल्डु

करदु   म्येरो   परागण

कामदेवा पंच फुलुं  म

पंचपरमेश्वरा  फुलुं  म

मि क्षीरै अनुकम्पा छौं

चम्पावतै बलमिक्यछौं?

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए कहती है कि बल भृगंराज (अमुक जैसा ही एक झाड़ीनुमा पेड़ जिसकी खुशबू से भृंगराज तेल सुवासित होता है/भंवरों का राजा) अमुक की परांगण (आंगनबाड़ी में), नहीं करता उसका परागण, इसलिए भृंगकीट गुबैल्डु (गोबर को खाने वाला गोखरू/गुबरैला कीट), करता है उसका परागण। अंत में अमुक पहेली के अनुसार अपनी बात को प्रश्नात्मक शैली में कहती और पूछती है कि बल कामदेव के पांच फुलों में, पंचपरमेश्वरों (विष्णु शिव पार्वती गणेश एवं सूर्य) के फूलों में, वह क्षीरसागर की अनुकम्पा (देव कृपा से दूध जैसी अमृतमयी औषधीय गुणों में फलित) है, तो बताओ कि चम्पावत‌ की बल वह क्या है?

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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