Advertisement

गोबर गणेश बल मि क्य छौं? PUZZLE-23 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE


गोबर गणेश बल मि क्य छौं?

PUZZLE-23

JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.

 GARHWALI PUZZLE

जख मुनि विश्वामित्र ह्वाला

वख मिरग भी मित्र  ह्वाला

मुनियों   का   बैरि   रागस

ता   रक्षौ   रघुवर    ह्वाला

मिरग  ह्वा  गोबर  नी   ह्वा

त  गुड़  भी  गोबर  नी ह्वा

त  जख  गोबर   गुबर्यैला 

वख  कीड़ु   भी   गुबरैला

भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) त्रेतायुग में लंकेश और मायावी मामा मारीच (जो किसी का भी रूप बदलने के छलबल में माहिर थे) के प्रसंग का भूमिका स्वरूप जिक्र करते हुए पहेली के प्रथम चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जहां मुनि विश्वामित्र होंगे, वहां मिरग भी मित्र होंगे, यानी संत मुनियों के आश्रम में वन प्राणी आराम से विचरण करते हुए नजर आते हैं, यानी संतमयी परिवेश में प्रकृति मानव और वन प्राणियों के बीच अद्भुत सामंजस्य स्थापित रहता है। तो बल मुनियों के बैरी रागस (राक्षस), तो मुनियों के यज्ञ की रक्षा के लिए रघुवर होंगे (जब राक्षसों का आतंक हद से ज्यादा बढ़ गया था, तो‌ विश्वामित्र बालावस्था में ही राम लक्षमण को आश्रम की शांति व्यवस्था बनाने हेतु अपने साथ ले गए थे)। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल मिरग हों गोबर नहीं हो, तो गुड़ भी गोबर नहीं हो, यानी किए कराए पर पानी भी नहीं फिरे, तो जहां खाद हेतु गोबर गुबर्यैला (फैलाएंगे), वहां कीड़े भी गुबरैला, यानी वहां गोबर को खाने‌ वाले कीड़े भी होंगे। 


सीता  मा   द्येखि   श्रीरंग

रावणै  मति  कीड़ु  भिरंग

बैठि  भिरंग्यै  भिंगर्यै  की

बणेगि  रावण  तैं   भिरंग

जु मारीच बणिज्यौ मिरग

स्वर्णनगरी बणज्यौ स्वरग

ममा भण्जा  घर म  होला

यख अपणु भागौ   खौला

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के भ्रामक दूसरे चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल सीता माता में देखकर श्रीरंग (सौभाग्य सूचक सुहागनी रंग), रावण की मति में कीड़ा भिरंग (भंवरे की तरह भृंग-भृंग यानी भिन्नभिन्नाने की आवाज करने वाला कीट/भृंगराज), बैठकर भिरंग्यै (भिन्नभिन्नाके) भिंगर्यैकी (गुस्से में), बना गया रावण को अपने जैसा भिरंग (यानी भृंगकीट किसी भी कीड़े को तुरंत नहीं खाता, उसपर डंक मार मार कर जब लगातार भृंग भृंग की आवाज करता है, तो‌ वह कीड़ा भी भृंग भृंग की आवाज करते हुए भृंगराज बन जाता है, यानी अमुक दूसरे में आत्मसात होकर उसे भी अपने जैसा बना देता है), तो बल रावण का शैतान दिमाग सोचने लगता है कि बल जो मामा मारीच बन जाए स्वर्ण मिरग, तो बल उसकी स्वर्णनगरी लंका बन जाएगी स्वर्ग (यानी रावण के कुटिल मन में सीता माता के सौभाग्य को हासिल करने की इच्छा जागृत हुई), तो बल मामा-भानजे घर में होंगे, यहां अपने भाग का खाएंगे, यानी रिश्तेदारी की बातें घर में ही अच्छी होती हैं, कार्यस्थल में व्यावहारिक बातें ही भली होती हैं, यानी राजा का जो आदेश होगा, उसे प्रजा को मान्य होगा, राजाज्ञा की अवहेलना मृत्युदंड के समान है, तो बल मामा मारीच मरता नहीं, तो क्या करता? 


मुनि  रक्षौ  ग्यैनि   रघुवीर

बगैर   फलौ   मारि    तीर

सौ जोजन  ज्यैकी  लमड

त बैर भलु नि अति घमंड

बल म्येर दशा भिरंग जन

हर दिशाम राम द्यख्यंदन

त बल ज्यै को परभु राम

वै को हि बल मोक्ष  धाम

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप अपनी बात को मामा मारीच के कथनानुसार आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल मुनि विश्वामित्र की रक्षा हेतु गए  रघुवीर, तो बगैर फल (नुकीली नोक/संगीन) के उस (मारीच) पर मारा तीर, तो‌ वह (मारीच) सौ जोजन दूर जाकर लमड (गिरा), तो बल हे राजन, श्री राम से बैर भला नहीं अति घमंड, क्योंकि बल उसकी (मारीच) की‌‌ दशा भिरंग जन (जैसी), कि हर दिशा में राम द्यख्यंदन (दिखाई देते हैं), तो‌ बल जिसके प्रभु राम, उसके ही बल मोक्ष धाम, यानी रावण के हाथों मरने से बेहतर है कि राम के‌ हाथों से स्वर्ण मिरग के रूप में मोक्षधाम  को प्राप्त करना। 


बल मि गोबर  गणेश  छौं

द्यखणम कालु खबेश छौं

त बल चम्पा को मेस  छौं

लवगोड  मि  कामेश‌  छौं

कीड़ुं  बणांदु  गुबैल्डु  छौं

बल चाहे लम्पट गल्डु छौं

मारीच जनु बल खरु  छौं

गोबरगणेश बलमि क्यछौं?

भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं का जिक्र करते हुए आगे कहता है कि बल वह गोबर  गणेश (मूर्खाधिराज) है, देखने में काला खबेश है, तो बल चम्पा स्वरूप गोपिका का कृष्ण भक्त मेस (पतिदेव) है, तो बल लवगोड वह कामेश‌ है। अंत में अमुक पहेली के अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और‌ पूछता है कि बल कीड़ों को‌ बनाता वह गुबैल्डु (भृगंराज) है, बल चाहे वह लम्पट गल्डु (मंदबुद्धि का) है, पर रामभक्त मारीच जैसा बल खरु (खरा) है, तो बताओ कि गोबर गणेश (गोबर पर आश्रित रहने वाला मूर्खाधिराज) बल वह क्या है?

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

Post a Comment

0 Comments