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अश्वमेघा प्रताप बल मि क्य छौं? PUZZLE-24 JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''. GARHWALI PUZZLE


अश्वमेघा प्रताप बल मि क्य छौं?

PUZZLE-24

JAGMOHAN SINGH RAWAT 'JAGMORA''.

 GARHWALI PUZZLE

बल अश्वागंधा खै की  आदिम 

ह्वै घ्वाड़ा सि बजरंगी  खादिम

त रजनीगंधा  खै की‌  जालिम

ह्वै सुलप्या भि बदरंगी बादिम

बल घुड़दड्या आदमी घ्वाड़ा

नि होंदा कभी निक्कमा बूढ़ा

तबल घुडचढ्या बांदर ब्वाडा

नि दबंदा कभी बंदुकी घ्वाड़ा

भावार्थ

अलाणा-फलाणा (अमुक) समुद्र मंथन के दौरान निकले चौदह रत्नों में से एक 'ऊच्चैश्रवा' (एक पौराणिक सफेद रंग का सतमुखी अश्व, जिसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान क्षीरसागर के अमृतमयी जल से हुई थी, उच्चैश्रवा इन्द्र का अश्व है, शब्दार्थ अनुसार जिसका यश ऊंचा हो, जिसके कान ऊंचे हों, अथवा जो ऊंचा सुनता हो) के प्रताप की भूमिका स्वरूप अपनी बात को घुड़दड़ी (पौड़ी शहर) के परिवेश में फलित पहेली के प्रथम चरण में आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल अश्वागंधा (पावर बूस्टर औषधीय जड़ी बूटी) खाकर आदिम (मर्द), हुआ घोड़े सा बजरंगी खादिम (सेवक/ध्वड़ैत/घुड़सवार), तो रजनीगंधा (गुटखा) खाकर जालिम, हुआ सुलपा (तंबाकू की चिलम पीने वाला) भी बदरंगी (कुरूप) बादि म (पेट की गैस में)। अमुक अपनी बात को पुनः आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल घुड़दड्या (घुड़दड़ी) के आदमी और घोड़े, नहीं होते कभी निक्कमे बूढ़े, क्योंकि कहते हैं दोनों से छुटकारा पाना हो तो बंदूक का घोड़ा दबाकर ही हो सकता है, तो बल घुडचढ्या  (घुड़चड़ी रस्म) के बांदर ब्वाडा (ताऊ), नहीं दबाते मौत की डर से कभी बंदूक का घोड़ा (बंदूक का ट्रिगर जिसे अंगुली के सहारे दबा कर गोली दागी जाती है)। 


बल सतमुखी ऊच्चैश्रवा‌  का

चौदा  कंदूड़  कै  कामा   का

त स्वर्गाधिराज सर्वेसर्वा  का

चौदा कुटकर्म कै कामा  का

ज्यै को बल इंद्र जदगा हूंचो

वै को बल यश उदगा  ऊंचो

वै  को  कंदूड़  जदगा  ऊंचो

वै को मल मुत्र  उदगा  सूचो

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली के भ्रामक दूसरे चरण में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल सतमुखी (सात मुंह वाले) ऊच्चैश्रवा‌ (इंद्र के घोड़े) के, चौदह कंदूड़ (ऊंचे सुनने वाले कान) किस काम के?, तो स्वर्गाधिराज (स्वर्ग के राजशासन पर विराजमान) सर्वेसर्वा (इंद्रराज) के, चौदह कुटकर्म (कुकर्म) किस काम के?, क्योंकि जिसका बल इंद्र जदगा (जितना) हूंचा (शैतान घंमड़ी), यानी कहते हैं कि बल 'हूंचे गेड़ी द्वी पैंसी (जेब में दो पैंसे), उसी में करवा बैठता है ऐंसी-तैंसी', उसका बल यश (यशगान/ऐश्वर्य) उतना ऊंचा, उसके यानी सात मुंह वाले तथाकथित घोड़े के 14 कान उतने ऊंचे, यानी जैसे अधिक काम में काम नहीं होता, वैसे ही अधिक कानों में सुनवाई का नाम नहीं होता, अदालत में तारीख पे तारीख भी इसी कारण आगे बढ़ती रहती है, कई बार मुलजिम के मरने पर ही मुकदमा खत्म होता है, तो उसका (ऊच्चेश्रवा) का मल मुत्र उतना सूचो (गाय के गोबर-गौमुत्र की तरह सुचा,‌ यानी पवित्र क्षीरसागर के अमृतमयी गंगाजल की तरह पवित्र)। 


बल जो चौदारत्नोंम एक ह्वा

वो  कामधेनु  जनी  नेक  ह्वा

त इंद्र से ऊच्चैश्रवा छीनिकि

तारकासुर भि नरक लैक ह्वा

त कामधेनु को प्यैकि ‌ गौमुत्र 

ह्वै नौछमि जशोदौ  श्यामपुत्र

अर ऊच्चैश्रवा को प्यैकि मुत्र 

ह्वै सुकर्मी असगंधौ कामसुत्र

भावार्थ

अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली के ज्ञानमयी तीसरे चरण में अपनी बात को संवेदनात्मक एवं भावनात्मक स्वरूप आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जो (ऊच्चैश्रवा‌) चौदह रत्नों में एक हुआ, वह कामधेनु (चौदह रत्नों में से एक हर मनोकामना पूरी करने वाली इंद्रराज की गाय कामधेनु) जैसा नेक हुआ, तो इंद्र से ऊच्चैश्रवा छीनकर, तारकासुर (तारकासुर का वध शिव पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय ने किया था, क्योंकि उसके जीवन का उद्देश्य इंद्र और देवताओं को हराकर स्वर्ग में असुरों का एकछत्र राज स्थापित करना था, इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु उसने इंद्रराज के ऊच्चैश्रवा, यानी घोड़ों के राजा सतमुखी घोड़े को इंद्र से छीना था) भी नरक लैक (लायक) हुआ, तो बल कामधेनु का पीकर ‌गौमुत्र, हुआ नौछमी (नौ कलाओं में नटखट) जशोदा का श्यामपुत्र, और ऊच्चैश्रवा का पीकर मुत्र, हुआ सुकर्मी असगंधा (अस यानी घोड़े के मूत्र की गंध से परिभाषित एक झाड़ीनुमा पौधे) का कामसुत्र। यानी अमुक पावर बूस्टर/इम्यूनिटी बूस्टर औषधीय पौधा है। 


जो भीमताळ जनू मी जड्या 

ऐंच पलाशै  जनू  मी‌‌  पुड्या

नैनीताल कमल सी  चिलमी

जौंम ललचैरीसी फुलझड्यां

रात्यु सी चांद दिनौ सी सुर्जा

रखदू फिट मनखी उर्जापुर्जा

घुडदड़ी कर्दु गोरखधंधा  छौं

अश्वमेघा प्रताप बल क्य‌ छौं?


भावार्थ

अमुक पहेली के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए आगे कहता है कि बल जो भीमताल (कुमाऊं मंडल का एक सुप्रसिद्ध ताल), यानी जमीन के नीचे जैसे वह जड्या (पहाड़ी मोटा मूला/जड़िया), ऐंच (ऊपर) पलाश जैसी अमुक की पत्तेदार पुड्या (पुड़िया), तो नैनीताल (कुमाऊं मंडल का दूसरा सुप्रसिद्ध ताल) कमल, यानी कमलनयन सी चिलमी, यानी अमुक के फूल चिलम के आकार के हैं, जिनमें लालचैरी (विंटर चैरी) फल सी हैं फुलझड़ियां। अंत में अमुक पहेली के अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि बल वह रात का सा चांद दिन का सा सुर्जा (सूरज), रखता है फिट मनुष्य की उर्जा (सूरज के सात घोड़ों के प्रताप से) पुर्जा (चांदनी की ठंडाई से अस्थि-पंजर शांत), वह घुडदड़ी (पौड़ी शहर) में करता गोरखधंधा (जल्दी न समझने वाली बात/जटिल कार्य जिसका निराकरण सहज न हो, यानी जगमोरा की तरह 'पजल'/करिश्मा करता) है, तो बताओ कि अश्वमेघ के प्रताप बल वह क्या है? 

जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'

प्रथम गढ़गीतिकाव्य पजलकार

मोबाइल नंबर-9810762253


नोट:- पजल का उत्तर एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ छंदबद्ध स्वरूप पजल में ही अंतर्निहित तौर पर छिपा हुआ होता है

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